यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकी तत्वों के मंसूबे पूरे न हों

   जम्मू कश्मीर में, खासकर जम्मू में, आतंकवादी हमले बढ़ रहे हैं। इस साल जम्मू में छह बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिसमें रियासी क्षेत्र में बस पर हुआ हमला भी शामिल है जिसमें 9 तीर्थयात्री मारे गए। घाटी में सुरक्षा बलों की चौकसी के कारण आतंकवादी जम्मू में सक्रिय हो गए हैं।

ARUN SINGH (Editor)

जम्मू कश्मीर के कठुआ में सोमवार को सेना के काफिले पर हुआ आतंकवादी हमला इस बात की नए सिरे से पुष्टि करता है कि बदले हालात में आतंकी तत्व अपनी मौजूदगी का जल्द से जल्द और अधिकाधिक तीव्रता से अहसास कराना चाहते हैं। हाल के दिनों में अंजाम दी जा रही आतंकी घटनाओं में कुछ नए पैटर्न दिख रहे हैं जो कई लिहाज से गौर करने लायक हैं।

   निशाने पर जम्मू : इसी साल की बात करें तो जम्मू क्षेत्र में छह बड़ी आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें रियासी क्षेत्र में बस पर हुआ हमला शामिल है, जिसमें 9 तीर्थयात्री मारे गए थे। पहली बात तो यह कि तीर्थयात्रियों को निशाना बनाना भी जम्मू कश्मीर में हिंसा की पृष्ठभूमि को देखते हुए कोई सामान्य बात नहीं है। दूसरी बात यह कि घाटी में सुरक्षा बलों की बढ़ी हुई चौकसी के मद्देनजर आतंकी तत्वों ने जम्मू के अपेक्षाकृत शांत माने जा रहे इलाकों में अपनी सक्रियता बढ़ाई है।

    लोकल सपोर्ट : जिस सफाई से आतंकी वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है, इसके लिए उपयुक्त स्थान और समय को चुना जा रहा है, वारदात के बाद आतंकवादी मौके से सुरक्षित निकल जा रहे हैं, यह सब बगैर स्थानीय समर्थन के संभव नहीं है। जाहिर है, इस बीच आतंकियों का एक लोकल सपोर्ट नेटवर्क खड़ा हो गया है।

     सीमा पार से घुसपैठ : आतंकी हरकतों में हुए इस इजाफे को खुफिया सूत्रों से मिली इस सूचना से अलग करके नहीं देखा जा सकता कि करीब दो महीने पहले ही सीमा पार से बड़ी संख्या में आतंकवादियों की घुसपैठ कराई गई है। हालिया आतंकी घटनाओं पर बारीकी से गौर करें तो साफ हो जाता है कि प्लानिंग से लेकर इम्प्लीमेंटेशन तक पूरी प्रक्रिया अच्छी तरह प्रशिक्षित लोगों द्वारा अंजाम दी जा रही है।

     चुनाव की समय सीमा: इस संदर्भ में देखें तो साफ है कि सीमा पार बैठे आकाओं का मकसद इन आतंकी वारदात के जरिए जम्मू कश्मीर में अशांति का संदेश देना और जैसे भी संभव हो जम्मू कश्मीर में आगामी चुनावों की प्रक्रिया को मुल्तवी कराना हो सकता है। पिछले लोकसभा चुनावों में हुए 58.6% मतदान ने निश्चित रूप से आतंकवादियों के आकाओं को परेशान किया होगा, जो पिछले 35 वर्षों का जम्मू कश्मीर का सबसे ऊंचा मत प्रतिशत है।

     चाल न हो सफल : ऐसे में इन आतंकवादी घटनाओं पर काबू पाना तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकी तत्वों के मंसूबे पूरे न हों। चुनाव हर हाल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 30 सितंबर की समय सीमा के अंदर संपन्न किए जाएं और जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा भी जल्द से जल्द दिया जाए। आखिर आतंकवाद की जड़ में मट्ठा डालने का एक प्रभावी तरीका निर्णय प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना भी है।