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अक्षय तृतीया का महापर्व एवं भगवान परशुराम

 

    अक्षय तृतीया का महापर्व वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष तृतीया में मनाया जाता है इसकी तिथि में किए गए पुण्य कार्यों का कभी क्षय नहीं होता है इसलिए इसका नाम अक्षय तृतीया पड़ा है इसे स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है होली दीपावली दशहरा और रक्षाबंधन की तरह इसलिए इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना किसी संदेह के किया जा सकते हैं यह वैवाहिक सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है*
क्यों मनाया जाता है अक्षय तृतीया महापर्व
       आजकल मुख्य रूप से भगवान परशुराम के जन्मदिन को लेकर ही अक्षय तृतीया मनाई जाती है भगवान परशुराम भगवान श्री हरि विष्णु के 10 अवतारों में से एक थे जिनका जन्म सतयुग और त्रेता युग की संधि बेला में हुआ और त्रेता युग में भगवान श्री राम के आने के बाद राजा जनक के धनुष यज्ञ में भगवान श्री राम के आदेश अनुसार वह महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने चले गये इनका वर्णन महाभारत में भी मिलता है देवव्रत भीष्म से उनका महा भयानक युद्ध होना और श्री राम को सारंग धनुष और कृष्ण भगवान को चक्र देना विश्व विख्यात है भगवान परशुराम के जन्म के अलावा अक्षय तृतीया को माता अन्नपूर्णा देवी का भी जन्म हुआ और इसी दिन भारत के इतिहास भूगोल को बदलकर सारे देश का मानचित्र बदलने वाली देव नदी गंगा जी का अवतरण हुआ था !
      आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन दुशासन शकुनी और कर्ण के कुटिल जाल में फंसी महासती द्रोपदी के चीर हरण पर उनकी लज्जा की सुरक्षा की थी लोकपाल कुबेर को अक्षय तृतीया के दिन ही संपूर्ण ब्रह्मांड का खजाना दिया गया था आज के दिन ही त्रेता और सतयुग का आरंभ हुआ था भगवान श्री कृष्णा और ब्राह्मण शिरोमणि सुदामा का मिलन भी आज के दिन ही हुआ था और ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का भी आज के दिन अवतरण हुआ था आज के दिन ही बद्रीनाथ के कपाट दर्शन के लिए खोले जाते हैं और आज के दिन ही वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के विग्रह के चरण दर्शन होते हैं और आज के दिन ही महाभारत का तीनों लोकों में फैला हुआ सबसे भयानक ब्रह्मांड युद्ध समाप्त हुआ था अक्षय तृतीया का महत्व उपर्युक्त कर्म से और स्वयं सिद्ध मुहूर्त होने से अक्षय तृतीया का सर्वाधिक महत्व है*
अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम का जीवन चरित्र
      भगवान परशुराम का जन्म त्रेता और सतयुग की संध्या बेला में हुआ था इनके पिता का नाम महर्षि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था यह चार भाई थे और पिता की आज्ञा पर इन्होंने अपनी माता का सिर काटकर फिर पिता से आशीर्वाद लेकर उन्हें पुनर्जीवित करके अपने भाइयों की पहले जैसी स्थिति का वरदान और दीर्घायु मांगा था या भगवान श्री हरि के छठे अवतार माने जाते हैं और अपने कर्तव्य निष्ठा एवं हठ के लिए जगत विख्यात हैं इनका जन्म वर्तमान मध्य प्रदेश का ज्ञान पावा गांव माना जाता है पहले इनका नाम पिता ने राम रखा लेकिन भगवान शिव की घनघोर तपस्या करके अजेय होने का वरदान प्राप्त कर इन्होंने उनसे परम भयंकर कुठार और फरसा प्राप्त हुआ तब से इनका नाम परशुराम हो गया!
      इनका एक नाम जामदग्न्प भी है उनकी शिक्षा महर्षि ऋचीक के द्वारा और पिता के द्वारा दी गई इनके महानतम शिष्यों में परम अतिथि योद्धा द्रोणाचार्य भीष्म पितामह और कर्ण थे महेंद्र गिरी वर्तमान में महाराष्ट्र के पिपलुण नामक स्थान में है जो रत्नागिरी में है उनके गुरु संसार के सबसे बड़े ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र थे जो इनके संबंधी भी लगते थे भगवान परशुराम ने राक्षसों द्वारा राजाओं के रूप में अपमान आतंक मचाने वाले हैहय वंशीय राजाओं को मार गिराया जिसमें सम्राट कार्तवीर्य अर्जुन नाम का हजार भुजाओं वाला अजेय योद्धा भी था जिसने उनके पिता की हत्या किया था!
      इन्होंने खोज-खोज कर उन राजाओं को मार गिराया जो अत्याचारी और प्रजा के विरुद्ध थे और यह सभी राक्षसों का वेश धारण करके राजा बनकर पृथ्वी पर आतंक का राज स्थापित कर रहे थे भगवान श्री राम के द्वारा धनुष की डोरी स्वयंवर में चढ़ा देने के बाद उनके तेज का हरण कर लिया गया और यह महेंद्र गिरी पर्वत पर चले गए यह अपने जीवन में केवल दो बार पराजित हुए पहली बार भगवान श्री राम से और दूसरी बार भीष्म पितामह से हारे थे परशुराम के कार्य और उनका यश कीर्ति इतना अधिक है कि वह वैसे भी ईश्वर माने जा सकते हैं*
  अक्षय तृतीया और खरीदारी विवाह और मांगलिक कार्य
      इसके अतिरिक्त इस दिन बिना लग्न मुहूर्त के भी विवाह और गृह प्रवेश किया जा सकता है जबकि इसका वस्त्र आभूषण सोने चांदी के गहने या किसी भी प्रकार की खरीदारी या वाहन लेने से कोई संबंध नहीं है इसको जबरदस्ती व्यापारी लोगों ने कुछ बिके हुए विद्वान और ज्योतिषी लोगों को खरीद कर बना दिया है जैसे भगवान धन्वंतरि की जयंती चिकित्सा से जुड़ी है और वहां गहना आभूषण इत्यादि की खरीदारी से इसका कोई संबंध नहीं है ठीक वैसे ही अक्षय तृतीया को किसी भी प्रकार की खरीदारी से कोई संबंध नहीं होता हैहां अक्षय तृतीया के दिन दान का फल बहुत अच्छा होता है और हर दान की गई चीज का चार गुना अधिक महत्व होता है !
     इसीलिए अक्षय तृतीया को अपने सामर्थ्य के अनुसार गाय भूमि तिल स्वर्ण रजत घी वस्त्र अनाज गुड चांदी नमक शहद और कन्यादान कर सकते हैं आज के दिन गंगा स्नान का भी अक्षय फल प्राप्त होता है क्योंकि आज के दिन ही भागीरथ की घनघोर तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी का अवतरण हुआ था अगर गंगा में स्नान न कर सके तो थोड़ा सा गंगाजल मिलकर घर में अवश्य ही स्नान कर लेना चाहिए लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि अगर आज के दिन अपने दुर्गुण बुराई और पाप छोड़कर सद्गुण अच्छाई और पूरे की ओर अग्रसर हो तभी उसका फल अच्छे होता है अन्यथा सारे उपाय व्यर्थ हैं!
अक्षय तृतीया को क्या करें क्या न करें
 अक्षय तृतीया को अगर संभव है तो गंगा नदी में स्नान करना चाहिए या गंगाजल डालकर नहाना चाहिए भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए इसके अलावा देवी महालक्ष्मी और लोकपाल कुबेर की भी पूजा करनी चाहिए इस दिन मांस मछली मदिरा तामसी चीज नशे की चीज तेल मसाले और तामसी चीजों का सेवन करना नहीं करना चाहिए दुराचार और झूठ से भी बचना चाहिए भगवान परशुराम की तरह दुष्ट आदतें और आतंकी लोगों के संघार का प्रण करना चाहिए
कब से प्रारंभ है इस वर्ष अक्षय तृतीया
     इस वर्ष की अक्षय तृतीया 10 मई को सुबह 4:17 से प्रारंभ होगी जबकि इसका समापन 11 में 2024 को सुबह 2:50 होगा उदयातिथि का पालन करते हुए 10 मई को ही अक्षय तृतीया मनाई जाएगी यही विधि धर्म अध्यात्म और विज्ञान सम्मत है
    लेखक -डॉ दिलीप कुमार सिंह(मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि )