सावन के चौथे सोमवार के दिन पढ़ें यह व्रत कथा, भोलेनाथ की कृपा से मिलेगा धन, सुख और वैभव!

भोलेनाथ और माता पार्वती की विशेष कृपा पाने के लिए सावन के सोमवार के व्रत की बहुत महिमा मानी जाती है. आज सावन सोमवार का चौथा व्रत है. मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अपार सुख की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि सावन सोमवार के व्रत में कथा का पाठ किए बिना व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता है. अगर आप भी सावन के चौथे सोमवार के दिन व्रत रख रहे हैं, तो इस दिन इस व्रत कथा का पाठ जरूर करें. सावन सोमवार के व्रत को करने वाले भक्तों के लिए इस कथा का पाठ करना अनिवार्य माना जाता है.

       सावन सोमवार व्रत कथा (Sawan Somvar Vrat katha)

मंजूलता शुक्ला(नव्या सिंह)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक साहूकार था, वह भगवान शिव का अनन्य भक्त था. उसके पास धन दौलत किसी भी चीज की कमी नहीं थी. तब भी वह उदास रहा करता था, क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी और संतान प्राप्ति की कामना के लिए वह रोज भगवान शिव के मंदिर में जाकर दीपक जलाता था. साहूकार के भक्ति भाव को देखकर एक दिन माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा कि प्रभु यह आपका अनन्य भक्त है. इसके सभी कष्टों को अवश्य दूर करना चाहिए. शिवजी बोले कि हे देवी, इस साहूकार की कोई संतान नहीं है, यही इसके दुख का कारण है.

माता पार्वती ने कहा, हे ईश्वर कृपा करके इसे पुत्र का वरदान दीजिए. तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती इस साहूकार के भाग्य में संतान का योग नहीं है. अगर इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिल भी गया तो वह केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा. इसके बाद भी माता पार्वती नहीं मानी और बोली, प्रभु आपको इस साहूकार को पुत्र का वरदान देना ही होगा, वरना भक्त क्यों आपकी सेवा-पूजा करेंगे? माता के बार-बार कहने से भोलेनाथ ने साहूकार को पुत्र का वरदान दिया. लेकिन यह भी कहा कि ये पुत्र केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा.

साहूकार ये सब बातें सुन रहा था. ये सुनने के बाद वह पहले की ही तरह भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता रहा. वरदान के प्रभाव से नवें महीने में साहूकार को पुत्र की प्राप्ति हुई. परिवार में खूब खुशियां मनाई गई, लेकिन साहूकार पहले की तरह ही उदास रहा और पुत्र की कम आयु का जिक्र उसने किसी से भी नहीं किया.

जब पुत्र 11 वर्ष का हुआ तो एक दिन साहूकार की पत्नी ने पुत्र के विवाह के लिए कहा. तब साहूकार ने कहा कि पुत्र अभी पढ़ने के लिए काशीजी जायेगा. इसके बाद उसने पुत्र के मामा को बुलाया और कहा कि इसे पढ़ने के लिए काशी ले जाओ और रास्ते में जहां भी रुकना वहां यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़ना. वे दोनों इसी तरह करते हुए जा रहे थे कि रास्ते में एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था.

जिससे राजकुमारी का विवाह होना था वह एक आंख से काना था. उसके पिता ने जब अति सुंदर साहूकार के बेटे को देखा तो उसने सोचा कि क्यों न इसे ही दुल्हा बनाकर शादी के सारे कार्य संपन्न करा लिया जाए. इसके लिए राजा ने मामा को बहुत सारा धन दिया, तब मामा बालक को दुल्हा बनाने के लिए मान गया.

इसके बाद साहूकार का बेटा दुल्हा बना और जब विवाह संपन्न हो गया तब जाने से पहले बालक ने राजकुमारी की चुनरी पर लिखा कि तेरा विवाह मेरे साथ हुआ, लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजेंगे वह एक आंख से काना है. इसके बाद वह अपने मामा के साथ काशी के लिए चला गया. जब राजकुमारी ने अपनी चुनरी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया. तब बारात वापस लौट गई. उधर मामा और भांजे काशी जी पहुंच गए थे.

एक दिन जब मामा यज्ञ की तैयारी कर रहे थे और भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर जाकर देखा तो भांजे के प्राण निकल चुके थे. वह बहुत परेशान हुए लेकिन सोचा कि अभी शोक मनाया तो ब्राह्मण चले जाएंगे और यज्ञ अधूरा रह जाएगा. यज्ञ संपन्न हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू कर दिया. तभी भगवान शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे, तब पार्वती जी ने शिवजी से पूछा हे प्रभु ये कौन रो रहा है? तब उन्हें पता चला कि ये तो वही साहूकार का पुत्र है.

तब पार्वती जी ने कहा, हे प्रभु इसे जीवित कर दें, नहीं तो रोते-रोते इसके माता-पिता के प्राण निकल जाएंगे. तब भोलेनाथ ने माता पार्वती से कहा कि इसकी आयु इतनी ही थी. लेकिन मां के बार-बार आग्रह करने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया. तब लड़का ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए जी उठा. मामा-भांजे दोनों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया और अपने नगर को लौटे. रास्ते में वही नगर पड़ा, वहां राजकुमारी ने उन्हें पहचान लिया तब राजा ने राजकुमारी को साहूकार के बेटे के साथ बहुत सारा धन देकर विदा किया.

उधर साहूकार और उसकी पत्नी छत पर यह प्रण लेकर बैठे थे कि यदि उनका पुत्र सकुशल न लौटा तो वह छत से कूदकर अपने प्राण त्याग देंगे. तभी लड़के के मामा ने आकर साहूकार के बेटे और बहू के आने का समाचार सुनाया लेकिन वे नहीं मानें तब मामा ने शपथ पूर्वक कहा तब दोनों को यकीन हो गया और दोनों ने अपने बेटे-बहू का स्वागत किया. उसी रात साहूकार को स्वप्न में शिवजी ने दर्शन देकर कहा कि तुम्हारे पूजन से मैं प्रसन्न हुआ. इसलिए तुम्हारे पुत्र को जीवनदान दिया. मान्यता है कि जो भी इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसके समस्त दुख दूर हो जाएंगे और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी.

(लेखिका यूपी जागरण डॉट कॉम (upjagran.com ,  A Largest News Web Portal Of Incredible BHARAT)की विशेष संवाददाता एवं धार्मिक मामलो की जानकार है )