जिला कृषि रक्षा अधिकारी, जौनपुर विवेक कुमार ने किसान भाइयों को सलाह दी है कि खेती में कीट/रोग नियंत्रण कार्य हेतु एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन को अपनाना लाभकारी होगा। एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन (आईपीएम) का प्रमुख उद्देश्य रासायनिक कीटनाशको का कमतर प्रयोग करके प्रदूषण रहित पर्यावरण तथा बिषरहित फसलोत्पादन प्राप्त करना है। इस विधि में फसल की बुवाई से पूर्व तथा कटाई तक विभिन्न उपायों को अपनाकर कृषि की अन्य शस्य, जैविक और यांत्रिक विधियों द्वारा फसलो में कीटो/रोगों का नियंत्रण करना है। इस विधा में विभिन्न क्रियाये अपनाया जाना खेती के लिए हितकर है।
गर्मी की जुताई करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है जिससे मृदा की जलधारण क्षमता बढ़ती है जो फसलो की बढ़वार के लिए उपयोगी होती है। खेतो की ग्रीष्मकालीन जुताई से मृदा के अन्दर छिपे हुये हानिकारक कीड़े मकोड़े और उनके अन्डो/सूंडियो/लार्वा प्यूपा सूर्य की तेज किरणों के सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाते है। फसल की साप्ताहिक निगरानी कर मित्र एवं शत्रु कीटो की जानकारी रखना आवश्यक है।
कीट/रोग नियंत्रण हेतु प्रमुखत बायोपेस्टीसाइड/बायोएजेंट्स का प्रयोग तथा आर्थिक क्षति स्तर पार करने पर इकोफ्रेंडली रसायनों का प्रयोग किया जाना। फसलो में कीटो/रोगों का प्रकोप होने पर सर्वप्रथम बायोपेस्टीसाइड-नीम आयल, ट्राइकोडर्मा, ट्राइको कार्ड, ब्यूवेरिया बेसियाना, बीटी आदि का प्रयोग करे। मेड़ो पर उगने वाले खरपतवारों की सफाई से किनारों की प्रभावित फसलो के बीच खाद एवं उर्वरको की प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, खरपतवारो को अगली फसल में फैलने से रोका जा सकता है।
मेड़ो पर उगे हुए खरपतवारो को नष्ट करने से हानिकारक कीटों एवं सूक्ष्म जीवो के आश्रय नष्ट हो जाते है। अन्न भण्डारण करते समय भी किसान भाइयो को निम्न बातो का ध्यान रखना चाहिए। भण्डारगृह की दीवार में यदि दरार हो तो उसे भर देना चाहिए। यथासम्भव नये जूट या प्लास्टिक के बोरो का प्रयोग करें और पुराने बोरो को मैलाथियान 50 प्रतिशत ई०सी० रसायन से उपचारित करें, ध्यान रहे कि भण्डारण के समय अनाज में 12 प्रतिशत से अधिक नमी नही होनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण हेतु एल्यूमुनियम फास्फाइड का प्रयोग करें।