11 मई/इतिहास स्मृति: जब बुद्ध फिर मुस्कुराए ….विशेष राष्ट्रवादी लेख इसे अवश्य पढ़े

     भारत की वैज्ञानिक प्रगति के इतिहास में 11 मई, 1998 का बड़ा महत्व है। उस दिन पोखरण में दूसरी बार परमाणु विस्फोट किया गया था। इससे पहले 18 मई, 1974 को जैसलमेर के पास एक सूखे कुंए में पहला विस्फोट हुआ था। बुद्ध पूर्णिमा होने से इसका कूट नाम ‘बुद्ध मुस्कुराए’ था। तब इंदिरा गांधी की सरकार थी; पर उसके बाद अमरीका तथा अन्य परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों के दबाव में चाह कर भी भारत दूसरा परीक्षण नहीं कर सका।
      भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी का शुरू से यह मत था कि भारत को परमाणु शस्त्रों से सम्पन्न देश बनना चाहिए। 1996 में भा.ज.पा. नेता अटल जी जब प्रधानमंत्री बने, तो शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने उन्हें एक कागज का टुकड़ा दिया। उस पर लिखा था, ‘कलाम से मिलो।’ वास्तव में भारत के परमाणु कार्यक्रमों की देखरेख वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. अब्दुल कलाम कर रहे थे। नरसिंहराव भी विस्फोट करना चाहते थे; पर अमरीकी खुफिया उपग्रह यह तैयारी देख लेते थे और दबाव डालकर उसे रुकवा देते थे।
अटल जी की वह सरकार केवल 13 दिन चली। संसद में विश्वासमत न होने से कोई बड़ा निर्णय लेना संभव नहीं था; पर 1998 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने डा.कलाम को बुलाकर इसकी अनुमति दे दी। इस बार सारा काम इतनी चतुराई से हुआ कि अमरीकी उपग्रहों को खबर तक नहीं हुई। 11 मई, 1998 को जब विस्फोट हुआ, तब ही सारी दुनिया को इसका पता लगा। इसका कूट नाम ‘आपरेशन शक्ति’ रखा गया था।
Manjulata shukla
     उस दिन सुबह ही आवश्यक पूजा के बाद प्रधानमंत्री अटल जी अपने आधिकारिक आवास (सात, रेसकोर्स मार्ग) में रहने आये थे। उसके बाद सात लोग वहां बैठकर एक विशेष सूचना की प्रतीक्षा करने लगे। वे थे – अटल जी, लालकृष्ण आडवाणी, रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मेजर जसवंत सिंह, वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, प्रधानमंत्री के राजनीतिक सलाहकार प्रमोद महाजन तथा प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव ब्रजेश मिश्रा।
     शाम को चार बजे से कुछ पहले रैक्स लाइन पर संदेश आया, ‘परीक्षण सफल।’ सब लोग प्रफुल्लित हो उठे। कुछ देर बाद प्रधानमंत्री निवास पर आयोजित प्रेस वार्ता में अटल बिहारी वाजपेयी ने पूरे देश और दुनिया को यह सूचना दी। उन्होंने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) के प्रमुख डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, आर.चिदम्बरम्, डा. अनिल काकोडकर, डा. के.संथानम आदि वैज्ञानिकों तथा अभियंताओं को बधाई दी।
    उस दिन तीन नियंत्रित विस्फोट किये गये थे। एक फिशन डिवाइस, दूसरा लो यील्ड डिवाइस और तीसरा थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस से हुआ। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि ये भूमिगत विस्फोट अपनी सुरक्षा तथा शांतिपूर्ण उद्देश्य से किये गये हैं। वातावरण में कैसी भी रेडियोएक्टिविटी नहीं फैली। इस समाचार से देशभक्तों के सीने गर्वित हो गये, तो दूसरी ओर दुनिया में हड़कम्प मच गया। अमरीका की तो मानो नाक ही कट गयी। उसके जासूसी उपग्रह धरे रह गये। परमाणु शक्ति सम्पन्न देश भारत की आलोचना करने लगे। कई देशों ने अनेक प्रकार के आर्थिक और सामरिक प्रतिबंध थोप दिये।
       पर इसके बावजूद दो दिन बाद 13 मई को दो विस्फोट और किये गये। इससे सब आवश्यक आंकड़े प्राप्त हो गये। भारत ने दिखा दिया कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो सब संभव है। संयोगवश उस दिन भी बुद्ध पूर्णिमा ही थी। भगवान बुद्ध एक बार फिर मुस्कुराए और भारत परमाणुशक्ति सम्पन्न देश बन गया। 1999 से इसकी स्मृति में 11 मई को ‘राष्ट्रीय प्रोद्यौगिकी दिवस’ के रूप में मनाते हैं। 2002 में इस विस्फोट के योजनाकार ‘भारत रत्न’ डा. कलाम ने राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया।
(लेखिका यूपी जागरण डॉट कॉम upjagran.com(A Largest Web News Channel Of Incredible BHARAT)की विशेष संवाददाता है )