बिहार के अररिया जिले की कलावती को आज के लोग कम ही लोग जानते हैं। कलावती वह महिला रहीं जिन्होंने भीख मांगकर पैसे जुटाए और उन पैसों से स्कूल बनवाया। वह खुद निरक्षर थी, लेकिन नारी शिक्षा के प्रति जागरूक रहीं। आलम यह रहा कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने उन्हें तोहफे में साड़ी दी तो वह उसे भी बेचकर उससे बच्चों के लिए किताब कॉपी खरीद लाई थी।
- अररिया की कलावती खुद निरक्षर थी, लेकिन नारी शिक्षा की पक्षधर रहीं
- रानीगंज बालिकाओं के लिए बनवाया स्कूल से लेकर डिग्री कॉलेज
- भीख के पैसों से कलावती ने शुरू किया था स्कूल
- कलावती के इन प्रयासों का सम्मान पद्मश्री देकर किया गया
- आज बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार नारी सशक्तिकरण को लेकर नारी शक्ति वंदन कार्यक्रम चला रहे हैं। इसमें नारी सशक्तिकरण और उत्थान को लेकर लंबी-लंबी बातों के साथ बेटी को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। लेकिन इन सबके बीच छह दशक पहले खासकर ग्रामीण इलाके में जब नारियां अपने घरों में कैद रहती थी। वह घर के चूल्हा चौकी तक ही सिमटी थी। ऐसे में रानीगंज की एक निरक्षर महिला कलावती देवी घर की दहलीज को लांघकर कभी न भूल पाने वाली मिसाल तय कर दी।
- वह खुद अक्षर ज्ञान से अनभिज्ञ थी और उसका मलाल उनको ऐसा था कि बालिकाओं के शिक्षा को लेकर ऐसी नजीर पेश की कि वह आज अजर अमर हो गई। पति की गंभीर बीमारी से मौत के बाद समाजिक तौर पर बहिष्कृत कलावती देवी के ऊपर दो बेटियों के भरण पोषण की बड़ी जिम्मेवारी थी। बावजूद इसके उन्होंने मन में ठानी दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत रानीगंज जैसी जगह में बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्कूल से लेकर डिग्री कॉलेज तक स्थापित कर दी।बालिकाओं के शिक्षा के प्रति उनके जुनून और प्रयास का कायल स्वयं आयरन लेडी कहलाने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हो गई थी। इंदिरा गांधी ने दिल्ली में बुलाकर न केवल उन्हें सम्मानित किया, बल्कि उसके इस प्रयास का उत्साहवर्धन करते हुए कलावती देवी को खादी की एक खूबसूरत साड़ी उपहार स्वरूप भेंट की थी। लेकिन कलावती देवी भला कहां रुकने वाली थी। उन्होंने प्रधानमंत्री के उपहार स्वरूप भेंट की गई साड़ी को भी बेचकर बालिकाओं के शिक्षा में लगा दी। अररिया सहित पूरे बिहार में बालिकाओं के शिक्षा के लिए स्कूल कॉलेज की स्थापना को लेकर भिक्षाटन की।
-
भिक्षाटन के दौरान पैर में पहनी जाने वाली चप्पल के टूट जाने पर उसे रस्सी और धागे के सहारे बांधकर यूज की। बाद में दो रंगों का चप्पल पहनकर भी अपने जुनून और सपने को साकार रूप प्रदान की। तभी तो 30 अप्रैल 1976 को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया। इस अवार्ड के साथ ही कलावती देवी सामाजिक कार्य को लेकर बिहार में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित होने वाली पहली महिला बनी।
कौन थी कलावती देवी
रानीगंज के छर्रापट्टी में गरीब किसान परिवार में जन्मी कलावती का रहन सहन काफी साधारण था। पिता नकछेदी मंडल और माता रामप्यारी देवी की पांच संतानों में दूसरी थी। गांव के ही पंचलाल चौधरी से उनकी शादी हुई थी। दो बेटियां थी। पति पंचलाल चौधरी की गंभीर बीमारी से मौत के बाद दोनों बेटियों के भरण पोषण की जिम्मेवारी उनकी थी। जीवन चुनौतियों से भरा था। पति की गंभीर बीमारी से मौत के बाद दकियानूसी समाज ने उनके परिवार को बहिष्कृत कर रखा था। बावजूद इसके खुद के न पढ़ पाने और अपनी बेटी के साथ समाज की बेटियों के पठन पाठन की बीड़ा उन्होंने उठाई और रानीगंज में प्राइमरी शिक्षा से लेकर उच्च और उच्चतर शिक्षा तक की न केवल नींव रखी। बल्कि अपनी इच्छाशक्ति से उसे अमलीजामा तक पहुंचाया।
तीन तीन शिक्षण संस्थान का कराया निर्माण
कलावती देवी ने छह दशक पहले ही बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ के मर्म को समझा। निरक्षर होने के बावजूद बालिकाओं के शिक्षा के अलख को जगाने के लिए लगातार भिक्षाटन के साथ खुद को पूरी तरह सपने को साकार करने मे लगी रही। सबसे पहले उन्होंने प्राइमरी स्कूल की आधारशिला रखी। खुद झुग्गी झोपड़ी में रहने के बावजूद स्कूल का भवन तैयार कराया।
-
आज यह स्कूल न केवल रानीगंज बल्कि अगल-बगल के सैकड़ों गांवों की बालिकाओं को प्लस टू तक की शिक्षा उपलब्ध करा रही हैं। 1968 में शहर के बीचों बीच कलावती कन्या मध्य विद्यालय की नीव रखी गई थी। 1970 में यह हाई स्कूल में और फिर 2014 में प्लस टू हाई स्कूल में बदली। कलावती कन्या मध्य विद्यालय, कलावती कन्या उच्च विद्यालय के बाद1983 में कलावती डिग्री कॉलेज के सपने को भी उन्होंने साकार रूप प्रदान किया। क्या कहते हैं ग्रामीण
कलावती देवी की शख्सियत ऐसी थी कि खुद झुग्गी में रहकर बेटियों के लिए स्कूल की बड़ी बड़ी बिल्डिंग बनवाई। जीते जी उनके कपड़ों से पैबंद नहीं गए। कभी एक नहीं हो सका उनके पैरों के दोरंगी हवाई चप्पल के फीते। बावजूद इसके कभी कम न हो सका उनका घर घर शिक्षा का जोत जलाने का जुनून। कल्पनाशील होते हुए अरुण मंडल बताते हैं कि अगर आज कलावती देवी जिंदा होती तो वह देख पाती कि कैसे उनके गांव की मुनिया बेटी उनके स्थापित स्कूल कॉलेज से निकलकर बेटों को मात देने में लगी है।
-
खुद या परिवार के बारे में कभी नहीं सोचा। शायद यही कारण था कि मरोणोपरांत भी बैंक में उनके निजी खाते में चंद रुपये और शिक्षण संस्थान के खाते में लाखों रुपये पड़े थे। अरुण मंडल बताते हैं कलावती देवी का बालिकाओं के लिए छात्रावास का भी सपना था, जिसका निर्माण भी कराया गया। लेकिन वह सपना साकार न हो सका।अलबत्ता उनके द्वारा निर्मित छात्रावास भवन आज भी रानीगंज में किसी भी मीटिंग और कार्यक्रम के लिए उपयोग में लाया जाता है। हालांकि रानीगंज डिग्री कॉलेज में छात्रावास बाद में कॉलेज प्रबंधन के द्वारा बनाया गया। लेकिन कलावती देवी के द्वारा बनाया गया छात्रावास का उपयोग सामाजिक कार्यों में किया जाता है। रानीगंज मुखिया संघ के अध्यक्ष एवं बगुलाहा पंचायत के मुखिया प्रिंस विक्टर बताते हैं कि समाज में जब अंधविश्वास और कुरीतियों का बोलबाला था तब उन्होंने जो साहस कर दिखाया, उसका ऋण कभी उतारा नहीं जा सकता। वहीं प्रसिद्ध साहित्यकार एवं रानीगंज वाइएनपी डिग्री कॉलेज के प्राचार्य डॉ.अशोक आलोक बताते हैं कि कलावती देवी में केवल जुनूनी था, बल्कि हठधर्मिता से लवरेज थी। कोई साथ दे या न दे वह अकेले भी पैदल अपने जुनून को लेकर घर घर जाकर शिक्षण संस्थान के लिए भीख मांगती थी। समाज कई तरह का ताना देता था, लेकिन कभी हार नहीं मानी। कम उम्र में पति की मौत के बाद दोनो बेटियों के लिए ढेकी और ओखली में चावल और चूड़ा तैयार करने का काम करती तो स्कूल कॉलेज के लिए भिक्षाटन। करोड़ों की जमीन के साथ पाय पाय जमाकर मिसाल स्थापित कर दी।
आर्मी, नेवी और एयरफोर्स.. गणतंत्र दिवस परेड में जब 148 बेटियों पर थम गई हर नजररानीगंज कलावती डिग्री कॉलेज के प्राचार्य प्रो.दयानंद राउत का कहना है कि नारी शिक्षा को लेकर पिछले दो तीन दशक से महानगर से लेकर कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में मुहिम चलाई जा रही है। लेकिन कलावती देवी ने तो छह दशक पहले ही इस मर्म को समझ लिया था कि नारी का शिक्षित होना कितना जरूरी है। खुद निरक्षर थी, लेकिन शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि अच्छे अच्छे रसूखदार ऐसा हिम्मत नहीं कर सकते। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा के लिए कन्याओं के लिए तो उच्चतर शिक्षा के लिए लड़का और लड़की दोनों के लिए को एजुकेशन वाला कॉलेज का निर्माण करवाया। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर पद्मश्री से सम्मानित हठधर्मी और जुनूनी कलावती देवी को शत शत नमन।