हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि व्रत विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से भोलेनाथ के साथ माता पार्वती की अपार कृपा प्राप्त होती है। तो आइए आज जानते हैं कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है।
हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तिथि को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त पूरे विधि-विधान के साथ माता पार्वती और भोलेनाथ की आराधना करते हैं। हर शिव मंदिरों को फूलों और रंगीन लाइटों से सजाया जाता है। वहीं महाशिवरात्रि के मौके पर कई मंदिरों में महादेव का विशेष श्रृंगार किया जाता है।
इस पावन दिन उपवास रखने और भगवान शिव और माता गौरी की आराधना करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। वहीं कुंवारी कन्याओं के सुयोग्य और मनचाहा जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि के मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में भव्य शिव बारात भी निकाली जाती है। तो चलिए अब जानते हैं कि आखिर महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है। इसके पीछे कौनसी धार्मिक कथा और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
महाशिवरात्रि पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा
महादेव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती के साथ हुआ था। दक्ष शिवजी को पसंद नहीं करते थे इसलिए उन्होंने महादेव को अपना दामाद के रूप में कभी नहीं स्वीकारा। एक बार दक्ष प्रजापति ने विराट यज्ञ का आयोजन करवाया जिसमें उन्होंने भगवान शिव और माता सती को छोड़कर हर किसी को निमंत्रण दिया। इस बात की जानकारी जब माता सती को लगी तो वह बहुत दुखी हुई लेकिन फिर भी वहां जाने का निर्णय ले लिया।
महादेव के समझाने के बाद भी सती जी नहीं रुकी और यज्ञ में शामिल होने के लिए अपने पिता के घर पहुंच गई। सती को देख प्रजापति दक्ष अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने भोलेनाथ का अपमान करना शुरू कर दिया। भगवान शिव के लिए दक्ष द्वारा कहे गए वाक्य और अपमान को माता सती सहन नहीं कर पाई और उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में खुद को भस्म कर लिया।
इसके बाद कई हजारों साल बाद देवी सती का दूसरा जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। पर्वतराज के घर जन्म लेने की वजह से उनका नाम पार्वती पड़ा। शिवजी से विवाह करने के लिए माता पार्वती को काफी कठोर तपस्या करनी पड़ी थी। कहते हैं कि उनके तप को लेकर चारों तरफ हाहाकर मचा हुआ था।
मां पार्वती ने अन्न, जल त्याग कर वर्षों भोलेनाथ की उपासना की। इस दौरान वह रोजाना शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाती थी, जिससे भोले भंडारी उनके तप से प्रसन्न हो। आखिर में देवी पार्वती के तप और निश्छल प्रेम से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी संगिनी के रूप में स्वीकार किया। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा था कि वह अब तक वैराग्य जीवन जीते आए हैं और उनके पास अन्य देवताओं की तरह कोई राजमहल नहीं है, इसलिए वह उन्हें जेवरात, महल नहीं दे पाएंगे।
तब माता पार्वती ने केवल शिवजी का साथ मांगा और शादी बाद खुशी-खुशी कैलाश पर्वत पर रहने लगी। आज शिवजी और माता पार्वती का वैवाहिक जीवन सबसे खुशहाल है और हर कोई उनके जैसा संपन्न परिवार की चाह रखता है।
(लेखिका यूपी जागरण डॉट कॉम (A Largest Web News Channel Of Incredible BHARAT )की विशेष संवाददाता एवं धार्मिक मामलो की जानकार हैं)