जो सुन रहे हम आज,ये छटपटाहट है।हमारे जगने से बेचैनी हैये उसीकी आहट है.. विक्रम सिंह “विक्रम”की बेहतरीन राष्ट्रवादी कविता का आन्नद ले

जो सुन रहे हम आज,
ये छटपटाहट है।
हमारे जगने से बेचैनी है
ये उसीकी आहट है।।
शुर में  मिलते न शुर,
उसीकी बौखलाहट है।
ये छटपटाहट है।।
यकीन था सोते रहेंगें,
जागे तो घबराहट है।
ये छटपटाहट है।।
सच्चाई समझ में आई,
उसीकी कुलबुलाहट है।
ये छटपटाहट है।।
आंखें चौधिया रही अब,
हमारी जगमगाहट है।
ये छटपटाहट है।।
चली वर्षों चलेगी अब नही,
इसी की तिलमिलाहट है।
ये छटपटाहट है।।
हुआ कम तेल  दिए का,
तभी ये फड़फड़ाहट है।
ये छटपटाहट है।।
कहा राष्ट्रभक्तों को आतंकि,
संतुलन खोने की बड़बड़ाहट है।
ये छटपटाहट है।।
उजाला देख सवेरे का,
अंधेरों में बौखलाहट है।
ये छटपटाहट है।।