मन की उर्जा का क्षय विचारों के द्वारा होता है जिसका प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। मन जब शांत और स्थिर होता है तो व्यक्ति सही निर्णय लेकर सफलता हासिल करता है। मन में शुभाशुभ विचार हर समय आते रहते हैं, मन अनेकानेक भावनाओं, विश्लेषण और तर्क-वितर्क में हर समय उलझा रहता है।
मन एक दर्पण के समान है, मन में शुभ विचार आने पर अथवा ईश्वर से जुड़ने पर मन सकारात्मक कार्य करने लगता है, शुभ विचार और ईश्वर के स्वरुप को प्रतिबिंबित करता है लेकिन यही मन यदि कुविचार से ग्रसित हो अथवा संसार की ओर सन्मुख हो जाए तो व्यक्ति की बुद्धि सीमित कर उसे भ्रम, संदेह आदि के भंवर में फंसाकर पतन की ओर ले जाता है।
मन द्वारा भाग्य परिवर्तन
संपूर्ण ब्रह्मांड में एक अलौकिक शक्ति विद्यमान है, जिसका एक अंश सुप्तावस्था में मनुष्य के अन्तर्मन में समाहित है। मनुष्य के मन के अंदर छिपी हुई शक्ति अन्य दूसरे मनुष्यों और वस्तुओं को प्रभावित करती है। ब्रह्मांड में विचरण कर रहे ग्रह-नक्षत्रों में उर्जा शक्ति विद्यमान होने के कारण ग्रह-नक्षत्रों की चाल से मनुष्य के भाग्य और भविष्य के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक क्रियाओं पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
हम जो आज हैं वह हमारे पुराने विचारों का प्रतिफल है
कोई भी विचार किसी भी स्थिति में उत्पन्न हो, उसका कभी क्षय नहीं होता है। उस विचार का एक Manjulata Shukla निश्चित फल अर्थात परिणाम अवश्य होता है, जो कि व्यक्ति के अंतर्मन में संस्कार रुपी बीज के रूप में संचित रहता है। मन की नकारात्मक प्रवृत्तियों, इच्छाओं को सकारात्मक स्वरूप देने का कार्य ज्योतिष शास्त्र ग्रहों और उपायों के माध्यम से करता है। उपायों को निरंतर करने से सकारात्मक उर्जा सबल होती है और चेतन मन के शुद्धिकरण के पश्चात अवचेतन मन में प्रविष्ट होती है, जहां पर समस्या का मूल बीज विद्यमान होता है। भाग्य का निर्माण करने के लिए मन की चंचलता को नियंत्रित करना अति आवश्यक है। कोई भी रोग पहले मन में उत्पन्न होता है, तत्पश्चात् उसके लक्षण शरीर पर दिखाई देने लगते हैं।
(लेखिका यूपी जागरण डॉट कॉम (A LAGEST WEB NEWS CHANNEL OF INCREDIBLE BHARAT)की विशेष संवाददाता एवं धार्मिक मामलो की जानकार हैं )