खाते में जमा जो होगा,
वही निकाला जाएगा।
छल कपट परपंच जाम तो,
सत्य कैसे निकल पायेगा।।
ऐसा नही कोई नही समझता,
चालबाजी कुटिलता को।
लोग इतने मूर्ख नही की,
समझें नही जाहिलता को।।
लगता है कि हमहि चतुर हैं,
और मूर्ख सारी दुनियाँ।
यही तो महान मूर्खता है,
जल्दी समझ नही आता।।
सबके अंदर कोई ना कोई,
सीखने जैसा होता है।
मगर अपने अहंकार में,
हमको ये नही दिखता है।।
अपना मूल्यांकन जरूर,
हमको करना ही चाहिए।
ईश्वर के सभी कीर्ति को,
जरूर महत्व देनी चाहिए।।
विक्रम सिंह”विक्रम”