ढाका. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश से जल्दबाजी में और बिना किसी औपचारिकता के चले जाने से न केवल भारत सरकार को नुकसान हुआ है, बल्कि उसे हाल के दिनों में पड़ोस में संभवतः सबसे बड़ी विदेश नीति चुनौती का सामना करना पड़ा है. जिसके कारण इस साल मालदीव के साथ संबंधों में आई उथल-पुथल पार्क में टहलने जैसी लग सकती है. अपनी कई असफलताओं और घरेलू राजनीति में लगातार अस्थिर स्थिति के बावजूद भारत के नजरिये से हसीना ने धार्मिक चरमपंथियों और भारत विरोधी ताकतों को कंट्रोल में रखकर क्षेत्रीय स्थिरता के लिए काम किया. एनएसए अजीत डोभाल ने हिंडन एयरबेस पर हसीना से मुलाकात की.
बांग्लादेश में मची उथल-पुथल से फिर सकते हैं भारतीय टैक्सटाइल उद्योग के दिन
बहरहाल भारत की ओर से देर शाम तक ढाका में हुए घटनाक्रम पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई. जिसने हसीना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को बांग्लादेश का आंतरिक मामला बताया था. ढाका से मिल रही खबरों के मुताबिक आने वाले वक्त में सेना द्वारा गठित अंतरिम सरकार में हसीना की अवामी लीग को शामिल नहीं किया जाएगा. जबकि विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा. जमात को पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों के लिए जाना जाता है. लेकिन बीएनपी ने इस साल की शुरुआत में चुनाव नहीं लड़ा था, क्योंकि यह कार्यवाहक सरकार के अधीन नहीं था. बीएनपी ने भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने का कोई मौका नहीं गंवाया.
जमात और बीएनपी ने मिलकर जुलाई की शुरुआत में एक छात्र आंदोलन के रूप में शुरू हुए आंदोलन को शासन परिवर्तन के लिए एक हिंसक देशव्यापी आंदोलन में बदल दिया. जबकि भारत को उम्मीद होगी कि सेना नई सरकार पर एक नरम असर डालेगी, फिर भी बहुत कुछ है जिसके बारे में उसे चिंता होगी.
हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता ने भारत को देश में आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति दी. जिसे सरकार अपने पूर्वोत्तर इलाके के विकास में एक अपरिहार्य भागीदार के रूप में भी देखती है. ऊर्जा और कनेक्टिविटी पर ध्यान केंद्रित करने वाली विकास साझेदारी फली-फूली. इससे भारत को बांग्लादेश के साथ 4000 किलोमीटर की सीमा पर सहयोगात्मक और शांतिपूर्ण सीमा प्रबंधन तंत्र बनाने और नशीली दवाओं और मानव तस्करी तथा जाली नोटों से संबंधित मुद्दों को हल करने में मदद मिली. भारत इस बात को लेकर चिंतित होगा कि ढाका में नई सरकार के आने के बाद इस तरह की पहल कैसे प्रभावित होंगी.