बांग्लादेश से जान बचाकर लौटे इंजीनियर की दास्तां कंपा देगी रूह

बांग्लादेश में तख्तापलट होने के बाद के हालात वहां रह रहे भारतीयों के लिए प्रतिकूल हो चुके हैं। छात्र आंदोलन के उग्र रूप लेन से पहले वहां भारतीयों को कोई खतरा नहीं था। इसके बाद यू-ट्यूब पर एक वीडियो वायरल हुआ और इतना तेजी से फैला कि स्थिति बेकाबू हो गई। यह बातें बांग्लादेश में बतौर इंजीनियर नौकरी करने वाले मनोज कुमार ने साझा की।

    संवाद सूत्र, चंदवक/जौनपुर। हिंसाग्रस्त बांग्लादेश से जीवनदान पाकर घर पहुंचे मनोज कुमार सिंह ने अपने परिवार व बच्चों संग जश्न मनाया। उन्होंने बांग्लादेश में फैली हिंसा व भारतीयों को निशाने पर रखे जाने की रूह कंपा देने वाली दास्तां जागरण से साझा करते हुए कहा कि वहां हम लोग निराश हो चुके थे, लेकिन बांग्लादेशी मकान मालिक के एक झूठ की मदद से हम भारतीयों की जान बच गई।

मनोज कुमार ने बताया कि पांच वर्ष पहले एक कंपनी के साथ बतौर साइट इंजीनियर कार्य करने का मौका मिला। सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था। कभी किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई।

5 अगस्त से पहले नहीं था भारतीयों को खतरा

मनोज ने बताया, करीब 20 दिन से छात्र आंदोलन चल रहा था। पांच अगस्त से छात्र आंदोलन के उग्र रूप लेन से पहले भारतीयों को कोई खतरा नहीं था। इसके बाद यू-ट्यूब पर एक वीडियो वायरल हुआ और इतना तेजी से फैला कि स्थिति बेकाबू हो गई।

संदेश में कहा गया कि ढाका में भारत की रॉ के एक एजेंट ने एके 47 से 20 बांग्लादेशियों को भून डाला है। इस झूठी खबर के बीच वहां की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना का भारत भाग जाना आग में घी का काम किया।

भारतीयों को ढूंढने लगे आंदोलनकारी

अफवाह के बाद भारतीय कल्चर हाउस ढाका को आंदोलनकारियों ने आग के हवाले कर उसका नामोनिशान मिटा दिया। भारतीयों को जगह-जगह ढूंढ़ा जाने लगा। पूरे बांग्लादेश में आंदोलनकारी भारतीयों को ढूंढने लगे और उनको नुकसान पहुंचाने लगे। बहुतों ने अपनी संपत्ति और जान दोनों गंवाई।

मकान मालिक के बचाई जान

बताया कि इसी क्रम में हमारे भी ठिकाने पर उग्र आंदोलनकारी पहुंचे और पूछताछ करने लगे। हमारे मकान मालिक डाॅ. सलीम सिकगर ने जवाब दिया। कहा कि सभी यहां से चले गए हैं। मकान के दरबान मोहम्मद रसल ने सांत्वना दिया कि आप लोग बिल्कुल न घबराएं यहां कुछ नहीं होगा।

    मकान मालिक ने कहा था कि लाइट बुझा कर दरवाजा अंदर से बंद कर पड़े रहिए, बाहर हम सब देख लेंगे। दूसरे दिन स्थिति थोड़ा बदली। स्थानीय लोग मोहल्ला कमेटी बनाकर पहरा देने लगे।

दो दिन बीतते-बीतते स्थिति और सुधरी। हम लोग पांच गाड़ियों से एक साथ 25 लोग सात अगस्त को निकले और रास्ते में एक सुरक्षित जगह रूपपुर पावर प्लांट के गेस्ट हाउस में रुक गए।

लोग समझते थे आर्मी के लोग जा रहे

इसके बाद आठ अगस्त को दो बजे तड़के निकल लिए। वहां से भारत बार्डर 150 किलोमीटर बचा हुआ था। रास्ते में कोई परेशानी नहीं हुई। एक साथ पांच गाड़ियों से चलने के कारण लोग समझते थे कि यह आर्मी के लोग जा रहे हैं, क्योंकि वहां कोई पांच गाड़ियां नहीं रखता। हम लोग सुबह बॉर्डर पर आ गए।

वहां पर छात्र आंदोलनकारी दुकान बंद कराकर सभी को चेक कर रहे थे कि कहीं शेख हसीना के आदमी भारत तो नहीं भाग रहे हैं। हम लोगों से भी पूछताछ किया गया, किंतु वह लोग परेशान नहीं किए, अलबत्ता कहे कि आप लोग मत जाइए। अब कुछ नहीं होगा, लेकिन हम लोग जल्दी लौटने का वादा करके बॉर्डर पार कर गए। भारत पहुंचकर हमने अपनी मातृभूमि को नमन किया।