कृष्ण के राष्ट्र-नायक स्वरूप और राष्ट्र-निर्माण की रचना प्रक्रिया को समझना होगा….
!कर्षति आकर्षति इति कृष्णः!! कृष्ण के अनंत स्वरूप हैं। अपनी-अपनी मूल प्रकृति के अनुसार भारत की हर भाषा, हर बोली, हर सांस्कृतिक-समूह, हर उपासना पद्धति, हर प्रान्त-जनपद ने कृष्ण को बारम्बार सुमिरा है। हर दर्शन परम्परा, हर एक आयातित निर्यातित विचारधारा ने कृष्ण को येन केन प्रकारेण भजा है। अद्वैत, द्वैत, द्वैताद्वैत हो…