अहंकार अंधापन है,और अहंकार के छूट जाते ही प्रज्ञा की आंख खुलती है!!
मैं ओंकार हूं कृष्ण कहते हैं, मैं ओंकार हूं। और कृष्ण कहते हैं, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद भी मैं ही हूं। ओंकार कहकर कृष्ण कहते हैं कि मैं वह परम अस्तित्व हूं, जहां केवल उस ध्वनि का साम्राज्य रह जाता है, जो कभी पैदा नहीं हुई’ और कभी मरती नहीं है, जो अस्तित्व का मूल आधार…