बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का निधन हो गया। गले का कैंसर उनके असमय निधन का कारण बना।
- कैंसर से जूझ रहे 72 वर्षीय सुशील मोदी का निधन
- 1973 में पीयू छात्र संघ के चुनाव में महासचिव चुने गए थे सुशील मोदी
- जेपी आंदोलन से शुरू हुआ था लालू, नीतीश और सुशील मोदी का सफर
- सियासत में दुश्मनी के बाद भी लिहाज कायम रखते थे सुशील मोदी
- पटना: भारतीय जनता पार्टी बिहार प्रदेश में सुशील कुमार मोदी वो नाम थे जो कभी किसी परिचय के मोहताज नहीं रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य सुशील कुमार मोदी की पहचान एक जुझारू नेता के रूप में की जाती रही। 5 जनवरी 1952 को जन्मे सुशील कुमार मोदी का निधन 13 मई 2024 को हो गया। सुशील कुमार मोदी गले के कैंसर से पीड़ित थे और वह पिछले डेढ़ महीने से दिल्ली एम्स में भर्ती थे। आपको बता दें कि लगभग 6 महीने पहले जब उन्होंने गले में खराश की जांच कराई थी, तब रिपोर्ट में ये पता चला था कि उन्हें कैंसर है।
- तब उन्होंने इसकी जानकारी बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को दी, लेकिन कार्यकर्ताओं को बीमारी के विषय में जानकारी नहीं दी। वे पहले की तरह ही पार्टी और संगठन के लिए काम करते रहे। लेकिन जब लोकसभा चुनाव में प्रचार ने जोर पकड़ा तो कैंसर की वजह से सुशील कुमार मोदी की तकलीफ भी बढ़ गई। लिहाजा उन्होंने वरिष्ठ नेताओं को कह दिया कि वह लोकसभा चुनाव में अपनी भागीदारी नहीं दे सकते। अंततः लोकसभा के चौथे चरण की रात यानी 13 मई को दिल्ली के एम्स में सुशील कुमार मोदी का निधन हो गया।
सुशील कुमार मोदी के निधन पर शोक की लहर
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की। मुख्यमंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा कि सुशील कुमार मोदी जेपी आंदोलन के सच्चे सिपाही थे। उप मुख्यमंत्री के तौर पर भी उन्होंने हमारे साथ काफी वक्त तक काम किया। मेरा उनके साथ व्यक्तिगत संबंध था और उनके निधन से मैं मर्माहत हूं। मैंने आज सच्चा दोस्त और कर्मठ राजनेता खो दिया है। उनके निधन से राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। ईश्वर से कामना है कि दिवंगत सुशील कुमार मोदी के परिजनों, समर्थकों और प्रशंसकों को दुख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करें।
जय और वीरू की जोड़ी थी सुशील नीतीश की
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मित्र मोदी के निधन से जहां पूरा बिहार दुखी है। वही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना सबसे प्रिय मित्र और राजनीतिक राजदार सुशील कुमार मोदी को खोया है। बिहार की राजनीति में भले ही सुशील कुमार मोदी और नीतीश कुमार कुछ दिनों के लिए सत्ता और विरोधी पक्ष में तब्दील हो गए हों। लेकिन दोनों की दोस्ती में कोई दरार देखने को नहीं मिली थी। हालांकि एक दूसरे के खिलाफ राजनीतिक बयानबाजी दोनों ओर होती थी।
ऐसा कहा जाता है कि 2015 में जब नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ मिलकर बिहार में महागठबंधन सरकार का गठन किया था। तब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री आवास में अपने कुछ विश्वसनीय मित्रों से यह कहा था कि आज उन्हें सुशील कुमार मोदी की कमी महसूस हो रही है। नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी की दोस्ती ऐसी थी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुशील मोदी पर आंख बंद कर भरोसा करते थे। नीतीश कुमार के नेतृत्व में तब चल रही एनडीए सरकार में सुशील कुमार मोदी उपमुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री हुआ करते थे। आपको बता दें कि मुख्यमंत्री साइकिल योजना और बालिकाओं के लिए पोशाक योजना जब शुरू की गई थी। तब इसके लिए पैसे कहां से आएंगे, इसकी चिंता नीतीश कुमार ने जताई थी।
सूत्र बताते हैं कि तब सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि आप योजना शुरू कीजिए। इस योजना के लिए पैसे की कमी नहीं होगी। यानी जन कल्याण योजना के लिए सुशील कुमार मोदी ही बिहार सरकार में पैसों का इंतजाम किया करते थे। बतौर वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी योजना के अनुरूप बजट बनाते थे और किस सेक्टर से कितना रेवेन्यू प्राप्त किया जा सकता है, इसका खाका भी तैयार किया करते थे। जिसकी वजह से एनडीए सरकार की योजनाओं के लिए पैसों की कमी नहीं होती थी।
लालू यादव राबड़ी देवी समेत तमाम नेताओं ने जताया दुख
RJD के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने 74 आंदोलन के छात्र नेता सह पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के निधन पर गहरी शोक संवेदना प्रकट की है। लालू प्रसाद ने कहा कि हमने एक संघर्ष और आंदोलन के साथी को खो दिया है। इनकी कमी हमेशा महसूस करूंगा। सुशील मोदी के निधन पर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने भी दुख व्यक्त किया है।
शिवानंद तिवारी ने 74 के आंदोलन को किया याद
राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा कि सुशील कुमार मोदी के असमय जाने से बिहार की राजनीति का एक कोना खाली हो गया है। उन्होंने कहा कि छात्र राजनीति से लेकर अब तक लगभग पचास वर्षों तक सुशील बिहार की राजनीति में एक स्तंभ की तरह खड़े रहे। इतनी लंबी पारी में सुशील जी पर कोई दाग नहीं लगा।
छात्र राजनीति से लेकर अब तक हमलोगों के बीच तीखा मतभेद रहा लेकिन हमारे संबंधों में कभी कटुता नहीं रही। शिवानंद तिवारी ने बताया कि ‘बीमारी के बाद सुशील जी पटना आये उस दिन रात में उनका फोन आया था, लेकिन उनकी आवाज ठीक से नहीं आ रही थी। तब मैंने खुद उनसे बात करने के लिए मना कर दिया था। अगले दिन मैं सुशील मोदी से मिलने उनके घर गया। लेकिन वो मात्र दो तीन मिनट ही उनके सिरहाने बैठ पाया। सुशील जी बेहद कमजोर हो गये थे।
बीमारी ने उनको घुन की तरह खोखला कर दिया था। जब मैं दोबारा मिलने पहुंचा तो हिम्मत नहीं हुई और सुशील मोदी जी की पत्नी से मिलकर उनका हाल-चाल लिया और वापस लौट आया। जयप्रकाश आंदोलन में सुशील और मैं लगभग तीन महीने बांकीपुर जेल में रहे। राजनीति में हमलोगों के बीच तीव्र वैचारिक मतभेद रहा। लेकिन आपसी संबंध उतना ही स्नेहिल रहा। लंबे राजनीतिक जीवन में सुशील मोदी पर कोई दाग नहीं लगा। कह सकते हैं कि काजल की कोठरी से सुशील बेदाग निकले। मैं उनके प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि व्यक्त करता हूं।