लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख एवं पूर्व प्रांत प्रचारक (अवध प्रांत) स्व. बालकृष्णजी के स्मरण में गोमतीनगर के विशाल खण्ड स्थित सीएमएस स्कूल के सभागार में बुधवार की शाम 5 बजे श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इसमें संघ के राष्ट्रीय स्तर के प्रचारकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत स्वयंसेवकों ने उपस्थित होकर अपनी भावांजलि अर्पित की। बुधवार की सुबह राजेंद्रनगर स्थित भारती भवन में उनकी आत्मिक शांति हेतु शांति पाठ एवं हवन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया था। इस अवसर पर उपस्थित समस्त अतिथियों ने कहा कि बालकृष्णजी जीवन पर्यन्त स्वयंसेवकों को निखार कर उन्हें देशसेवा के लिए प्रेरित करने का कार्य करते रहे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक का पूरा जीवन एक कठिन परीक्षा को जीने के समान है। अविवाहित रहते हुए वे राष्ट्रसेवा के लिये अपना घर-बार त्याग देते हैं। वे बिना पीला वस्त्र धारण किये ही सनातन धर्म एवं संस्कृति की रक्षा करते हैं। प्रचारक का यही धर्म श्रेष्ठता से निभाने वाले वरिष्ठ प्रचारक बालकृष्णजी उपाख्य बालजी अब गोलोकवासी हो चुके हैं। उन्होंने 20 अगस्त, 2024 को अपना नश्वर शरीर त्याग दिया था। वे संघ में विभिन्न पदों पर रहते हुए राष्ट्रनिर्माण में अहम भूमिका निभाते रहे। बालकृष्ण जी पांच भाइयों में दूसरे क्रम पर 5 मार्च, 1937 को जन्मे थे।
उनका पैतृक निवास कानपुर देहात की बिल्हौर तहसील के शिवराजपुर ब्लॉक के कंठीपुर ग्राम पंचायत में था। 87 बसंत देखने वाले बालजी ने कानपुर के तत्कालीन विभाग प्रचारक स्व. अशोक सिंहल जी की प्रेरणा से नौकरी छोड़कर वर्ष 1962 में संघ का प्रचारक बनने का संकल्प लिया था। इसके बाद वे तहसील प्रचारक बिल्हौर, नगर प्रचारक कानपुर, जिला प्रचारक, विभाग प्रचारक, प्रांत शारीरिक प्रमुख, सह प्रांत प्रचारक, प्रांत प्रचारक अवध प्रांत, संयुक्त क्षेत्र सम्पर्क प्रमुख, उ.प्र. व उत्तराखंड तथा अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख आदि दायित्वों पर रहे। आपातकाल के समय कानपुर में भूमिगत होकर सक्रिय रूप से काम किया।
वर्तमान में उनका केन्द्र लखनऊ स्थित भारती भवन में था। इस अवसर पर अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वान्त रंजन जी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रेम कुमार जी, सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख पूरब क्षेत्र मनोजकान्त जी, वरिष्ठ प्रचारक रामजी भाई, क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख मिथिलेश जी, अवध क्षेत्र के प्रान्त प्रचारक कौशल जी सहित मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह सहित संघ के कई दायित्वधारी कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
श्रद्धासुमन अर्पित करते हुये कहा…
माननीय बालजी के साथ लम्बे समय तक रहने का मुझे अवसर मिला। मैं उनको लेकर वाराणसी और लखनऊ के चौक की गलियों में स्कूटर से संघ की शाखाओं में जाया करता था। गलती होने पर वे डॉंटते थे मगर उनकी डॉंट में भी अथाह प्रेम होता था।
वे स्वयंसेवकों के लिये जितने कोमल हृदय के थे, उतने ही स्वयं के प्रति कठोर। वे शारीरिक के साथ ही उत्कृष्ट घोष वादक भी थे। उनमें देश के प्रति समर्पण का भाव कूट-कूटकर भरा था।
– स्वान्त रंजन जी, अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख, आरएसएस
बालकृष्णजी का जीवन देश के लिए समर्पित रहा। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका जीवन सिद्धांतों के प्रति अडिग रहे। ऐसे महापुरुष को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ।
– बृजेश पाठक, उप मुख्यमंत्री, यूपी
वे परिस्थितियों को हराकर आदर्शों पर जीना पसंद करते थे। प्रचारक स्वयंसेवकों को गढ़ने का कार्य करते हैं। प्रचारकों के सम्पर्क में रहकर ही वे पारस पत्थर सा स्पर्श पाकर स्वर्ण से निखर जाते हैं। 1972 में मैं उनके सम्पर्क में आया। स्वयंसेवकों को निखारने वालों में बालकृष्णजी का जीवन अनूठा रहा है। वे स्वयंसेवकों की सहायता और उनकी चिंता के लिये सदैव तत्पर रहते थे।
– नरेंद्र भदौरिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक
मृत्यु, जीवन का उत्तर है। मनुष्य की जीवन यात्रा एक प्रश्न है। आरएसएस की यात्रा में कई प्रचारक निकले। प्रचारक बनने से पूर्व मन में कई सवाल उठते हैं। बालजी ऐसे ही न जाने कितने स्वयंसेवकों के लिए उत्तर बने। उनका स्वभाव नारियल जैसा था। उनका जीवन सबके लिये आदर्श है।
– ओमपाल जी, वरिष्ठ प्रचारक
मैं महानगर का शारीरिक प्रमुख होता था। संघ में ध्वज का रोपण और रोहण करने का कार्य मुझे सौंपा गया था। इस काम को करने में प्रयोग में लाई जाने वाली बारीकियों को उन्होंने ही मुझे सिखाया। वे गलती देखने के बाद उसे उसी वक्त सुधार करवाते थे। वे हर स्वयंसेवक का ध्यान रखते थे। वे उनके सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं तक पर चर्चा करते थे। उसका समाधान करते थे। वे सबकी बहुत चिंता करते थे।
– माधवेंद्र जी, एकल अभियान
स्व. बालकृष्णजी हर स्वयंसेवक के घर और उनके चूल्हे तक की चिंता किया करते थे। मेरे पिताजी के साथ उनका लम्बा सानिध्य रहा। उनकी बीमारी की अवस्था में एक बार मैं उनसे मिलने गया। मैंने उन्हें ढाँँढस देने का प्रयास किया। इस पर वह मुस्काते हुए बोले, ‘न तो मैं डॉक्टर की दवा से ठीक होऊँगा और न ही आपकी सांत्वना से। विधि का जो विधान होगा, उसे सबको जीना ही होगा।’ आदरणीय बालजी इस तरह जीते थे। उन्होंने हजारों स्वयंसेवकों को प्रेरणा देने का कार्य किया है।
– दिनेश शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री, यूपी
दुनिया में आकर लोग मोह माया में उलझ जाते हैं। मगर बाली ने मोह-माया पर विजय प्राप्त कर ली थी। वे संघ कार्यालय की चाय तक नहीं पीते थे। उनके कप के नीचे चवन्नी रखी होती थी। वे कहते थे कि गुरु दक्षिणा की चाय पीकर उसका दुरुपयोग नहीं करना चाहिये। एक बार मैंने बैठक में प्रचारकों के जीवन बीमा होने की बात कही तो उन्होंने कहा कि समाज हमारी हर जरूरतें पूरी कर देता है। यही हमारा सबसे बड़ा जीवन बीमा है।
– रामजी, क्षेत्र कार्यकारिणी सदस्य
प्रचारक का कार्य समाज के हर व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के कार्य से जोड़ना होता है। वे ऐसे ही प्रचारक थे। वे जिसके भी घर भोजन के लिए जाते वहॉं की माातृशक्तियों को देश और समाज के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करते। उन्हें समस्त राष्ट्रीय स्वयंसेविकाओं की ओर नमन है।
– शशि जी, राष्ट्रीय स्वयंसेविका समिति
वर्ष 1968 में मेरी उनसे भेंट हुई। वे मजदूरों के लिये कुछ न कुछ करने के लिए प्रेरित करते रहते थे। वे स्वयंसेवकों के लिए सदैव समर्पित रहते थे। स्वसंवकों की कोई भी समस्या सुनकर वह उसका तुरन्त ही निदान किया करते थे।
–सर्वेशजी, राष्ट्रधर्म
बालकृष्ण जी एक मूर्तिकार की तरह पत्थर में आवश्यक छँटनी करके मूर्ति बनाने अर्थात स्वयंसेवकों को तराशने का कार्य किया करते थे। हम भाग्यशाली हैं जो उनकी छेनी-हथौड़ी हम पर भी पड़ी। उन्होंने बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों को राह दिखाने का कार्य किया है।
– सुमित खरे जी, सह प्रांत संघ चालक आरएसएस
वह एक अनुभवी प्रचारक थे। उनका जीवन बेदाग था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं सका। साथ ही, संघ के आर्थिकी का अंकेक्षण करते समय वे पाई-पाई का हिसाब करते थे। वे हर हिसाब को बारीकी से खूंगालते थे ताकि कहीं कोई हानि न हो। आज भले ही हम उन्हें श्रद्धांजलि देने आए हैं लेकिन हम उनके जीवन से प्रेरणा भी पा रहे हैं।
– प्रेम जी, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य
बालजी की योजनाएं बहुत अच्छी होती थीं। वह हर स्वयंसेवक को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। उन्हें उपयोगी और उचित सलाह दिया करते थे। उन्होंने मेरा भी मार्गदर्शन किया था।
– अखिलेश जी, क्षेत्रीय शारीरिक प्रमुख
जीवन की कई दुविधाओं को पार करके कोई प्रचारक बनता है। बालजी एक आदर्श प्रचारक थे। हम सबको उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये। उनके दिखाये मार्ग पर चलकर हमें राष्ट्र के लिये कुछ करने का संकल्प लेना चाहिये।
– जय प्रताप, विद्या भारती
वे जब भी कहीं मिलते तो परिवार के वरिष्ठ सदस्य की तरह व्यवहार करते। गलती होने पर डॉंटते और उसे सुधारने की सलाह देते। एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगता था कि किसी वरिष्ठ प्रचारक से भेंट हो रही है।
– संयुक्ता भाटिया, पूर्व मेयर
विवरण:
श्री बालकृष्ण जी
पिता – स्व. मन्नूलाल त्रिपाठी जी
माता – स्व. शान्ति देवी जी
(कुल 5 भाईयों में से दूसरे क्रम पर)
जन्म- 05-03-1937
जन्म स्थान : ग्राम- कंठीपुर, ब्लाक- शिवराजपुर, तहसील- बिल्हौर, कानपुर देहात
शिक्षा – एम.काम.
डीएवी कालेज कानपुर
शिक्षा पूरी होने के बाद आप कानपुर के एर्गन मिल में सेवारत थे। कानपुर के तत्कालीन विभाग प्रचारक स्व. अशोक सिंहल जी की प्रेरणा से नौकरी छोड़कर सन 1962 में आप संघ के प्रचारक निकले।
प्रचारक जीवन:
* 1962 में बिल्हौर से प्रचारक निकले।
* तहसील प्रचारक बिल्हौर
* नगर प्रचारक कानपुर
* जिला प्रचारक
* विभाग प्रचारक
* प्रांत शारीरिक प्रमुख
* सह प्रांत प्रचारक
* प्रांत प्रचारक अवध प्रांत
* संयुक्त क्षेत्र सम्पर्क प्रमुख, उ.प्र. व उत्तराखंड
* अखिल भारतीय सह व्यवस्था प्रमुख
आदि दायित्वों का आपने निर्वहन किया।आपातकाल के समय आपने कानपुर में भूमिगत होकर सक्रिय रूप काम किया।
वर्तमान में आपका केन्द्र ‘भारती भवन’ लखनऊ था।