प्रयागराज : महाकुंभ 2025 के जरिए सनातन का डंका पूरी दुनिया मे बज रहा है. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी ने बड़ा कदम उठाते हुए म्यांमार में सनातन का प्रचार-प्रसार करने के लिए वहां के संत का पट्टाभिषेक कर उन्हें महामंडलेश्वर की पदवी प्रदान की. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि दूसरे देशों में भी सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए विदेशों में रहने वाले संतों-महंतों को अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया जा रहा है. इसी कड़ी में श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी में म्यांमार से आए भारतीय मूल के संत स्वामी विवेकानंद गिरी का पट्टाभिषेक कर उन्हें महामंडलेश्वर की पदवी दी गई. .
मंगलवार की रात में आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद महाराज और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी के साथ अखाड़े से जुड़े संत-महंत समेत सैकड़ों भक्तों के बीच पट्टाभिषेक का कार्यक्रम किया गया. पट्टाभिषेक के बाद महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद गिरी ने बताया कि वह म्यांमार के पहले महामंडलेश्वर बनाए गए हैं. वह अखाड़े की जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए सनातन का प्रचार-प्रसार करेंगे. म्यांमार में रहने वाले 10 लाख से अधिक भारतीयों को वह जागरूक करेंगे.
स्वामी विवेकानंद गिरी ने बताया कि वह हिंदू देवी-देवताओं के साथ सनातन धर्म संस्कृति का म्यांमार में विस्तार करेंगे. वहां के लोगों को सनानत की शक्ति से अवगत कराएंगे. वह पहले से ही वहां मंदिर के साथ ही वेद विद्यालय और दूसरे धार्मिक संस्थान संचालित कर धर्म का प्रचार कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि वह म्यांमार के अलावा नेपाल और थाईलैंड में भी प्रवचन करने के लिए जाते हैं. वह हिंदी, अंग्रेजी के साथ ही नेपाली और म्यांमार की भाषा में भी प्रवचन करते हैं. अब महामंडलेश्वर की पदवी मिलने के बाद उनकी जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई है. वह सनातन को मानने वाले ऐसे लोग जो दूसरे धर्मों को अपना चुके हैं, उनकी घर वापसी के लिए प्रयास भी करेंगे.
म्यांमार के रहने वाले स्वामी विवेकानंद गिरी ने बताया कि वह 35 साल से सनातन धर्म के लिए कार्य कर रहे हैं. उन्होंने वहां 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद वाराणसी आकर वैदिक शिक्षा ग्रहण की है. वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की.
उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा भागवत भूषण की उपाधि भी प्रदान की गई है. अब वह म्यांमार में रहने वाले अपने शिष्यों को भी वैदिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी भेजते हैं.उन्होंने बताया कि 12 साल में उनका मन घर से विरक्त हो गया था. इससे वह मंदिर में जाकर रहने लगे. वेद-पुराण और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन शुरू किया.