पितृपक्ष एवं पितृ विसर्जन विशेष

डॉ दिलीप कुमार सिंह
    सनातन धर्म अद्भुत अलौकिक और ईश्वर द्वारा चलाया गया धर्म है जिसे अनेक महापुरुषों ने समय-समय पर गतिशील किया है इस समस्त संसार में जो मुस्लिम क्रिश्चियन और यहूदी नहीं है वह सभी सनातन धर्म में आ जाते हैं चाहे वह नास्तिक ही क्यों ना हो क्योंकि भारत में चार्वाक नाम के महान विद्वान ने चार्वाक मत या नास्तिकवाद का प्रवर्तन किया था सबसे बड़ी बात है भारत के हर कार्य हर पर्व उत्सव और शुभ तथा अशुभ कर्म पूरी तरह से विज्ञान ऋतु देशकाल परिस्थितियों प्रकृति और वातावरण से संबंधित हैं
       पितृ पक्ष और पितृ विसर्जन भी एक ऐसा ही परम वैज्ञानिक महान पर्व है जो मरे हुए पूर्वजों से संबंधित है जिन्हें पितृ कहते हैं करने के बाद व्यक्ति प्रेत हो जाता है और इसीलिए उसकी आत्मा प्रेत आत्मा के समान होती है इसलिए उसके लिए भोजन जल इत्यादि की व्यवस्था विशिष्ट प्रकार से की जाती है इसीलिए क्वार महीने में अंधेरे पक्ष एक से लेकर अमावस्या के दिन तक कहीं भी शुभ कार्य मंगल कार्य पूजा पाठ धूप दीप अगरबत्ती नहीं जलाई जाती है क्योंकि पितृ लोग प्रेत योनि में ही अपने घर या संबंधी लोगों के यहां आकर अपना पिंडदान जल दान स्वीकार कर सकते हैं और जैसे ही आप पूजा पाठ धूप दीप एवं मंत्रों का उच्चारण करेंगे तो वह आपके घर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे क्योंकि शुभ और मांगलिक कार्यों तथा मंत्र शक्तियों के होते हुए कोई भी भूत प्रेत घर में नहीं प्रवेश कर सकता है इसीलिए इसको पितृपक्ष कहा गया और इस समय हर प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य पूजा पाठ यज्ञ हवन अनुष्ठान और मंत्रों का जाप करना निषिद्ध किया गया है और यह पूरा 15 दिन तक पितरों के लिए समर्पित रहता है सोचिए हमारे पूर्वज कितने महान थे जो अपने स्वर्गवासी पूर्वजों के लिए भी 15 दिन इतना बड़ा त्याग करते थे और कर रहे हैं
       इस वर्ष पितृपक्ष का आरंभ 19 सितंबर बृहस्पतिवार के दिन प्रारंभ हो रहा है और द्वितीया की तिथि न होने के कारण 14 दिन का पितृपक्ष होगा 2 अक्टूबर के दिन पितृ विसर्जन किया जाएगा जिसके मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उसका पिंडदान अमावस्या को किया जाता है और जो किसी प्रकार के शस्त्र से मृत्यु को प्राप्त किया है उसको चतुर्दशी के दिन तर्पण किया जाता है धरती से पितृ लोक की यात्रा बहुत लंबी होती है और इस काल में मनुष्य द्वारा दिए गए जल दान पिंडदान और तिल के दान से ही उसकी शक्ति और ऊर्जा मिलती है कर्म के अनुसार व्यक्ति अच्छे और बुरे लोकों में स्वर्ग या नरक में जाता हैऔर अच्छे कर्म होने पर  लोग सूर्य लोक स्वर्ग लोक ब्रह्मलोक शिवलोक और विष्णु लोक को प्राप्त करता है यह आध्यात्मिक और धार्मिक पक्ष है
    अब इसके वैज्ञानिक पक्ष का भी विश्लेषण करते हैं क्वार महीने में मुख्य रूप से सर्दी और गर्मी अर्थात शीत और गरम का समय होता है इस समय भोजन खानपान में विशेष सावधानी रखनी होती है अन्यथा व्यक्ति को वात पित्त कफ के रोग हो जाते हैं अधिक ठंडा पीने से व्यक्ति को खांसी और उसके शरीर में कफ जम जाता है इसी तरह अधिक तेल मसाले मिर्च इत्यादि का सेवन करने से व्यक्ति के शरीर के यांत्रिक क्रिया प्रभावित होती है और व्यक्ति मलेरिया टाइफाइड और विभिन्न प्रकार के रोग तथा बीमारियों और बुखार इत्यादि से ग्रस्त हो जाता है इतना ही नहीं इस समय वर्षा समाप्त होने को होता है और जाडा प्रारंभ होने को होता है इसीलिए बाहर से आने पर तत्काल ठंडी चीज ग्रहण नहीं करना चाहिए!
      फ्रिज की कोई भी चीज कम से कम 15 मिनट बाद ही खाना चाहिए इस समय लापरवाही करने से चर्म रोग और नस नाडियों का रोग भी बहुत तेजी से फैलता है इस समय मांस मछली इत्यादि में वर्षा काल में प्रवाहित विभिन्न प्रकार के अम्ल एवं जहर का अंश होता है इसीलिए क्वार महीने भर मांस मछली  खाना मदिरा सहित किसी भी मादक पदार्थ का निषेध किया गया है शरीर की पाचन शक्ति ही बहुत कमजोर हो जाती है इसीलिए इस काल में सादा लेकिन अच्छे पौष्टिक भोजन का किया जाना अनिवार्य किया गया है
      क्वार महीने में अधिक परिश्रम भी नहीं करना चाहिए देशकाल पर्यावरण धर्म अध्यात्म विज्ञान सभी दृष्टियों से पितृ पक्ष और पितृ विसर्जन का पर्व एक महान पर्व है जिसमें हम अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा अर्पित करते हुए उनको स्नान करके श्रद्धा के साथ जल दान पिंडदान कुछ और काले तिल का दान दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके करते हैं दक्षिण दिशा यमराज का द्वार होती है और पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति भी दक्षिण की ओर उल्टा चलती है इसलिए मृतक लोगों के शरीर को उत्तर की तरफ किया जाता है!
       पितृ पक्ष में अगर बड़ा पुत्र जीवित हो तो उसी को पिंडदान करना चाहिए वैसे पिंडदान का अधिकार सभी को होता है विशेष करके तीन पीढियों को पिंडदान किया जाता है माता की तीन पीढ़ियां पिता की तीन पीढ़ियां नाना की तीन पीढिया और नानी की तीन पीढ़ियां इसमें शामिल होती है ऐसा माना जाता है कि इसके पहले के पूर्वज कहीं न कहीं जन्म लेकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे होंगे इसीलिए तीन पीढियां के पहले के लोगों को पिंडदान नहीं करते हैं
(लेखक मौसम विज्ञानी एवं अधिवक्ता है )