उम्मुल खेर की कहानी संघर्ष और प्रेरणा से भरी है। फ्रैजाइल बोन डिसऑर्डर से जूझने और परिवार का सपोर्ट ना मिलने के बावजूद, उन्होंने UPSC परीक्षा पास की। उम्मुल जब पांच साल की थीं, तभी उनका परिवार दिल्ली आ गया था और निजामुद्दीन की झुग्गियों में रहने लगा था। उनके पिता रेहड़ी-पटरी पर काम करते थे।
नई दिल्ली: बेहद छोटी सी उम्र थी उसकी, जब राजस्थान के मारवाड़ में रहने वाला उसका परिवार रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आ गया। देश की राजधानी के निजामुद्दीन इलाके में बनी झुग्गियों में उसका बचपन बीतने लगा। पिता रेहड़ी लगाकर कपड़े बेचते थे और परिवार की गुजर-बसर मुश्किल से ही हो पाती थी।
कुछ वक्त बाद जब निजामुद्दीन की झुग्गियां तोड़ दी गईं, तो उसका परिवार दिल्ली में त्रिलोकपुरी की झुग्गियों में जाकर बस गया। उसे बचपन से हड्डियों की ऐसी बीमारी थी, जिसकी वजह से 16 फ्रैक्चर और 8 सर्जरी झेलनी पड़ीं। लेकिन इन चुनौतियों और मुश्किलों के बावजूद उसने अपने हौसले को नहीं टूटने दिया और वो मुकाम हासिल किया, जिसका सपना उसने बचपन से देखा था।
ये कहानी है उम्मुल खेर की, जिनकी कामयाबी संघर्षों से भरी हुई है। उम्मुल खेर का बचपन हड्डियों की बीमारी के कारण फ्रैक्चर और सर्जरी के साथ बीता। जहां दूसरे बच्चे खेलते थे, वहीं उन्हें अक्सर घर में ही रहना पड़ता था। लेकिन इन सबके बावजूद उनके अंदर अपने लिए एक बेहतर भविष्य बनाने की इच्छा शक्ति थी।
जब रोजगार की तलाश में उनका परिवार राजस्थान के मारवाड़ से दिल्ली आया, तो निजामुद्दीन इलाके की झुग्गियों में रहा। और यहीं रहकर उम्मुल ने शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए बनाए गए पंडित दीनदयाल उपाध्याय संस्थान से पांचवीं कक्षा की पढ़ाई की।
अपनी पढ़ाई के लिए परिवार से कर दी बगावत
सरकार के आदेश के बाद जब निजामुद्दीन की झुग्गियां तोड़ी गईं तो उनका परिवार त्रिलोकपुरी की झुग्गियों में आकर बस गया। उम्मुल ने यहीं रहते हुए अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट से अपनी आठवीं तक की पढ़ाई पूरी की। जब उन्होंने परिवार से कहा कि वो आगे पढ़ना चाहती हैं तो माता-पिता ने कहा कि उनके घर की लड़कियां इसके आगे नहीं पढ़तीं। ऐसे में उम्मुल ने परिवार से बगावत कर दी और एक अलग झुग्गी में रहना शुरू कर दिया। यहां उम्मुल ने अपनी पढ़ाई के खर्च के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया, जिसके बदले में उन्हें एक बच्चे से 50 से 100 रुपए मिलते थे।
पीएचडी के बाद निकाली यूपीएससी
इतनी मुश्किलों का सामना करते हुए भी उम्मुल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर जेएनयू से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जेएनयू में उन्हें जूनियर रिसर्च फेलोशिप भी मिली, जिससे उन्हें हर महीने 25,000 रुपये मिलने लगे। यही वो वक्त था, जब उम्मुल ने अपने उस सपने को याद किया, जो वो बचपन से देखा करती थीं। और ये सपना था आईएएस बनने का। जेएनयू से पीएचडी करने के बाद उम्मुल ने यूपीएससी की परीक्षा दी और अपने पहले ही प्रयास में सफलता हासिल कर ली। उम्मुल को ऑल इंडिया रैंक 420 हासिल हुई। रैंक के आधार पर उन्हें इंडियन रेवेन्यू सर्विस (IRS) में डिप्टी कमिश्नर के पद पर नियुक्ति मिली।
नेताजी सुभाष से मिली प्रेरणा
उम्मुल की कहानी सामान्य नहीं है। एक लड़की जो गरीबी से जूझ रही थी, परिवार की बंदिशों से लड़ रही थी और जिसके साथ बचपन की एक ऐसी बीमारी थी, जिसकी वजह से उन्हें भारी दर्द झेलना पड़ा, उसने इन सब मुश्किलों से लड़ते हुए जीत हासिल की। दरअसल, उम्मुल को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन से। बचपन में उम्मुल ने जब नेताजी के बारे में पढ़ा तो सीखा कि कैसे एक इंसान ने परेशानियों के बीच अपनी राह बनाई। जिस दौर में अक्सर लोग निराशा और असफलताओं का सामना करते हैं, उनकी कहानी उम्मीद की एक किरण दिखाती है।