नए आपराधिक कानून,इंसाफ की कसौटी,नागरिक अधिकारों की गारंटी ?

ARUN SINGH (Editor)

तमाम उम्मीदों और आशंकाओं के बीच देश में भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता ((BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (‌BSA) लागू हो चुकी हैं। ये तीनों कानून मौजूदा भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य कानून की जगह लेने वाले हैं। लेकिन इसमें दशकों लग सकते हैं। जाहिर है, तब तक देश में नए और पुराने दोनों कानून साथ-साथ चलेंगे। इसकी अपनी चुनौतियां होंगी।

सरकार आश्वस्त
विपक्षी दलों से जुड़े नेता ही नहीं, कई एक्सपर्ट्स भी इन कानूनों के लागू किए जाने को लेकर कुछ सवाल और संदेह जताते रहे हैं। लेकिन सरकार इन्हें लेकर पूरी तरह आश्वस्त नजर आती है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जहां विपक्षी दलों के सुझाव सुनने की तैयारी दिखाई है, वहीं यह भरोसा भी जताया है कि नए कानूनों से मुकदमे निपटाने की प्रक्रिया में तेजी आएगी। यही नहीं, उनके मुताबिक इन कानूनों से दोष साबित होने की दर 90% तक बढ़ाई जा सकेगी

इंसाफ की कसौटी
ये दोनों ही लक्ष्य अच्छे कहे जाएंगे बशर्ते इस क्रम में इंसाफ की संभावना को कोई नुकसान न हो। विलंब से न्याय को अन्याय के बराबर माना गया है, लेकिन जल्दी आया फैसला भी अच्छा नहीं कहा जाएगा अगर वह सभी पक्षों को आश्वस्त नहीं कर सके कि इंसाफ हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नए कानूनों के तहत बनने वाली व्यवस्था भी ‘इंसाफ न सिर्फ होना चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए’ की कसौटी पर सौ फीसदी खरी उतरेगी।

पुराने की जगह नया
इस बात से किसी को इनकार नहीं हो सकता कि पुराने पड़ चुके कानून हटाए जाने चाहिए। लेकिन अंग्रेजों के जमाने के औपनिवेशिक कानूनों में पूरे रद्दोबदल के तर्क से लाए गए इन नए कानूनों में भी यह शिकायत दूर नहीं हुई। चाहे मानहानि हो या राजद्रोह इनसे जुड़े प्रावधान अभी भी किसी न किसी रूप में कानून में शामिल हैं। मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की जरूरत भी पूरी नहीं हुई है।

काम का बोझ
इनवेस्टिगेशन में तकनीक की भूमिका बढ़ाने का विचार अच्छा है। लेकिन जांच प्रक्रिया का मसला काम के बोझ से जुड़ा है। फॉरेंसिक टीम वैसे भी कई मामलों की जांच से जुड़ी काम के बोझ से दबी रहती है। जाहिर है, इसकी कार्यक्षमता बढ़ाने में पर्याप्त ऊर्जा लगाने की जरूरत होगी। उसके बगैर ‘ड्यू प्रॉसेस’ में सुधार कागजों से आगे बढ़ना मुश्किल होगा।

नागरिक अधिकारों की गारंटी

बहरहाल, तीनों नए आपराधिक कानूनों का लागू होना एक बड़ा कदम है। इसे लेकर अभी से संदेह और निराशा का माहौल बनाने की जरूरत नहीं है। मगर याद रखना होगा कि व्यवहार में इन बदलावों के लिए भी सबसे बड़ी कसौटी यही होगी कि संविधान द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता नागरिक अधिकार सुनिश्चित करने के लिहाज से ये कितने प्रो-एक्टिव साबित होते।