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एएमयू को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त
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फैसले का असर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर भी पड़ेगा
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सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएगी
फैसले का सर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर भी पड़ेगा
अदालत ने आठ दिन तक दलीलें सुनने के बाद एक फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। एक फरवरी को शीर्ष अदालत ने कहा था कि एएमयू अधिनियम में 1981 के संशोधन ने केवल आधे-अधूरे मन से काम किया और संस्थान को 1951 से पहले की स्थिति में बहाल नहीं किया। 1981 के संशोधन ने इसे प्रभावी रूप से अल्पसंख्यक दर्जा दिया था।
एएमयू का गठन 1920 के एक्ट से हुआ था
एएमयू पर संविधान सभा की बहस का भी जिक्र
साथ ही एएमयू पर संविधान सभा की बहस का भी जिक्र किया और कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है बल्कि राष्ट्रीय महत्व का देश का बेहतरीन संस्थान है। उन्होंने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने के परिणाम बताते हुए कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15 (1) कहता है कि राज्य किसी के भी साथ जाति, धर्म, भाषा, जन्मस्थान, वर्ण के आधार पर भेद नहीं करेगा।
10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं चीफ जस्टिस
जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उनके पास अब कुछ ही कार्य दिवस हैं। ऐसे में उनकी सेवानिवृत्ति से पहले इन मामलों में फैसला आ जाएगा। जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में फैसला देने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सेवानिवृत्त होने वाले आखिरी न्यायाधीश हैं।
यह संयोग ही है कि उनकी सेवानिवृत्ति से एक दिन पहले नौ नवंबर को अयोध्या पर आए फैसले को पांच वर्ष पूरे हो जाएंगे। गत जुलाई में ही जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या गए थे और रामलला का दर्शन किया था। शायद वह पहले प्रधान न्यायाधीश हैं जो रामलला के दर्शन करने अयोध्या गए।