कुंभ के कोतवाल:सृष्टि का प्रथम ‘यज्ञ’ प्रयाग में प्रारंभ हुआ जो कल्पवास का मूल आधार है

कुंभ के कोतवाल
सृष्टि का प्रथम ‘यज्ञ’ प्रयाग में प्रारंभ हुआ जो कल्पवास का मूल आधार है।
      जब देवता, दानव, यक्ष, मानव यहाँ आने लगे, तो इस क्षेत्र की रक्षा के लिए ब्रह्मा जी ने सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु जी से कहा कि यहां इस क्षेत्र में मेले की रक्षा करें। भगवान विष्णु प्रत्येक दिशा में द्वादश माधव स्वरूप में यहाँ विराजमान हुए जिनके नाम त्रिवेणी माधव, शँख माधव, सँकष्टहर माधव, वेणी माधव, असि माधव, मनोहर माधव, अनंत माधव, बिंदु माधव, पद्म माधव, गदा माधव, आदि माधव, चक्र माधव हैं।
द्वादश माधव का नेतृत्व करने का जिम्मा वेणी माधव को सौंपी गई जिन्हें कुंभ का कोतवाल कहा जाता है।
     सभ्यता की शुरुआत का साक्षी बना प्रथम कल्पवास, उसके बाद एक महीने का कल्पवास प्रत्येक मनुष्य, यति, देव, किन्नर, अन्यान्य प्राणी का धर्म बन गया किंतु आज भी उनकी रक्षा का दायित्व द्वादश माधव पर ही है। 
     साल में एक बार द्वादश माधव यात्रा भी निकाली जाती है।परम्परा है कि माघ मेले की शुरुआत में वेणी माधव के स्वरूप को  भ्रमण कराया जाता है उसके बाद यह माना जाता है कि  पौष पूर्णिमा से चलने वाले  माघ मेले के दौरान वेणी माधव माघ मेले में ही विचरण करते हुए माघ मेले की रक्षा करेंगे।  कल्पवासियों की पूजा अर्चना तभी सम्पूर्ण मानी जाती है जब वे  कल्पवास के सम्पन्न होने पर वेणी माधव मंदिर जाकर उनका दर्शन करें।
       मंदिर में शालिग्राम शिला से बनी वेणी माधव की प्रतिमा के साथ त्रिवेणी जी की प्रतिमा भी है। त्रिवेणी जी की प्रतिमा भी माधव की तरह ही शंख चक्र धारण लिए हुए है, माधव विष्णु रूप में खड़े हैं पर त्रिवेणी जी कमल पर विराजमान हैं। कहा जाता है कि ये इस रूप विष्णु जी की यह अद्वितीय प्रतिमा है जो कहीं और नहीं है।
     पूरे माघ मेले के दौरान वेणी माधव मंदिर में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहता है। वेणी माधव जी को रिझाने के लिए, उनकी कृपा माघ मेले पर बनी रहे इसके लिए पूजा पाठ के अलावा कई कलाकार भी मंदिर में प्रस्तुति देते हैं।
    इस बार जब महाकुंभ में जाइयेगा तो कुंभ के कोतवाल के दर्शन अवश्य कीजियेगा। दारागंज तट पर स्थित उनके दरबार में हाजिरी लगाने के बाद नि:शंक होकर मेला भ्रमण करिएगा।