क़्वालिटी खराब तो मसाला फर्मों पर गाज! सरकार की सख्ती के बाद FSSAI ने जुटाए 1,500 से ज्यादा सैंपल

नियामक बाजार में उपलब्ध शिशु आहार के नमूने की भी जांच कर रहा है। सरकारी अधिकारी ने कहा कि इस जांच के नतीजे भी अगले 15 दिनों में मिल जाएंगे।

सरकार ने मसालों की गुणवत्ता के बारे में शिकायतें आने के बाद सख्त रवैया अपना लिया है। एक आला अधिकारी ने यूपी जागरण डॉट कॉम को आज बताया कि अगर मसाला बनाने वाली कंपनी डिब्बाबंद मसाला उत्पादों में कीटनाशकों की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक रखी तो सरकार उसका लाइसेंद रद्द करने में जरा भी देर नहीं करेगी।

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने देश भर से मसालों के 1,500 से अधिक नमूने एकत्र किए हैं। FSSAI फिलहाल इन नमूनों की जांच कर इनमें रसायन, सूक्ष्मजीव, माइक्रोटॉक्सिन्स, सूडान डाई और एथिलीन ऑक्साइड (ईटीओ) सहित 234 कीटनाशकों की मात्रा का पता लगाने में जुट गई है। देश भर में FSSAI के 1,500 से अधिक परीक्षण केंद्र हैं।

अधिकारी ने बताया कि इन नमूनों की जांच रिपोर्ट 15 दिनों में आ जाएगी। खाद्य नियामक ने बाजार में उपलब्ध मसालों की गुणवत्ता परखने के लिए 25 अप्रैल को पूरे देश में मुहिम शुरू की है।

इससे पहले हॉन्ग कॉन्ग में सेंटर फॉर फूड सेफ्टी (CFS) और सिंगापुर फूड एजेंसी ने भारत के दो मसाला ब्रांडों एमडीएच और एवरेस्ट स्पाइसेस के मसाला उत्पादों में ईटीओ मौजूद होने का दावा किया था। इन शिकायतों के बाद FSSAI ने यह कदम उठाया है।

FSSAI के एक अधिकारी ने पिछले सप्ताह बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘ईटीओ जैसे कीटनाशकों का इस्तेमाल मसालों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए होता है। सही तो यह है कि निर्यात के लिए तैयार उत्पाद देसी बाजार में नहीं बिकें।’

सूत्रों ने कहा कि नियामक ने मसाला बनाने वाली सभी कंपनियों से नमूने एकत्र किए हैं। द अमेरिकन स्पाइस ट्रेड एसोसिएशन (ASTA) ने शुक्रवार को भारतीय मसाला बोर्ड को एक पत्र लिखा था। इस पत्र में उसने साफ किया कि कि अमेरिकी नियामक को आयातित मसालों एवं मसाला उत्पादों में ईटीओ के इस्तेमाल से दिक्कत नहीं है बशर्ते वह तय सीमा में हो।

पत्र में आगे कहा गया, ‘एथिलीन ऑक्साइड के इस्तेमाल की इस आवश्यक प्रक्रिया पर पाबंदी लगाने के कुछ अनचाहे परिणाम सामने आ सकते हैं। इससे भारतीय मसाले के लिए अमेरिकी खाद्य एवं सुरक्षा नियमों के अनुरूप नहीं रह जाएंगे।’

नियामक बाजार में उपलब्ध शिशु आहार के नमूने की भी जांच कर रहा है। सरकारी अधिकारी ने कहा कि इस जांच के नतीजे भी अगले 15 दिनों में मिल जाएंगे।

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय और राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग (एनसीपीसीआर) ने एफएसएसएआई को बाजार में मिल रहे शिशु आहार में चीनी की मात्रा जांचने के निर्देश दिए हैं। स्विट्जरलैंड की एक गैर-सरकारी संस्था (एनजीओ) पब्लिक आई की एक रिपोर्ट आने के बाद सरकार हरकत में आई है।

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नेस्ले जैसी कंपनियां एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में अपने नीडो और सेरेलक उत्पादों में सुक्रोज के रूप में जरूरत से ज्यादा शर्करा मिलाती है।

मगर नेस्ले इंडिया ने इन दावों को बेबुनियाद बताया। नेस्ले इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक (MD) सुरेश नारायण ने कहा, ‘FSSAI के अनुसार प्रति 100 ग्राम आहार में 13.6 ग्राम शर्करा मिलाने की अनुमति है मगर नेस्ले इंडिया इससे भी कम यानी 7.1 ग्राम शर्करा मिलाती है।