ईरान ने इजराइल पर मंगलवार देररात बैलिस्टिक मिसाइल से हमला किया. दोनों देशों की दुश्मनी जगजाहिर है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब दोनों की दोस्ती के चर्चे होते थे. फिर सवाल उठता है कि दोस्ती में कैसे दरार पड़ी कि दोनों एक-दूसरे को तबाह करने में जुट गए. आइए जानते हैं पूरी कहानी.
ईरान ने मंगलवार देर रात इजराइल पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागी. पूरा इजराइल इमरजेंसी सायरन की आवाज से गूंज उठा. इस हमले के साथ ही ईरान ने कहा, यह हमला हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह और हमास नेता इस्माइल हानियेह की हत्या का जवाब है. हमला शनिवार को जारी इजराइल के उस बयान के बाद हुआ है जिसमें प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान को सीधे चुनौती दी थी.
ईरान और इजराइल की दोस्ती कैसे दुश्मनी में बदली?
कहानी शुरू होती है 1948 से, जब इजराइल एक देश बना. इजराइल के सामने सबसे बड़ा संकट था मान्यता का. मिडिल ईस्ट के मुस्लिम देश समेत दुनिया के कई ज्यादातर देशों ने उसे मान्यता देने से मना कर दिया. उस समय तुर्की के बाद सिर्फ ईरान ही वो मुस्लिम देश था जिसने इजराइल को मान्यता दी. इस तरह दोनों दोस्त बने.
इजराइल ईरान को हथियार और तकनीक देता था और तो बदले में ईरान उसे तेल. सम्बंध इतने मधुर हुए कि इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान के इंटेलिजेंस सावाक को खुफिया काम को अंजाम देने की ट्रेनिंग भी दी. ईरान में पहलवी वंश के शाह का शासन था. लेकिन साल 1979 में ईरान में बहुत बड़ा बदलाव हुआ. ईरान का यह बदलाव इजराइल के लिए मुश्किल बढ़ाने वाला था.
वो क्रांति जिसने दरार डाली
1979 में अयातुल्लाह खोमैनी की क्रांति ने पूरी तस्वीर बदल दी. खोमैनी ने शाह को उखाड़ फेंका और देश में इस्लामी गणतंत्र लागू किया. खोमैनी ने खुद को रक्षक के तौर पर पेश किया. इसके साथ ही ईरान के सहयोगी रहे अमेरिका और इजराइल के साम्राज्यवाद को नकारने की योजना को अंजाम देना शुरू किया.
हालात बिगड़ने लगे और इजराइल ने अयातुल्लाह सरकार से सम्बंध खत्म कर दिए. ईरान ने इजराइल के नागरिकों के पासपोर्ट की वैधता को मान्यता देना ही बंद कर दिया. तेहरान में इजराइली दूतावास को फिलिस्तीन लिब्रेशन ऑर्गेनाइजेशन के हवाले कर दिया. ईरान आक्रामकता के साथ अपने एजेंडे को लागू करने में जुटा था. इस देश के कई नेता फिलिस्तीनियों के साथ लेबनान में गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण ले चुके थे.
इस्लामिक ताकत के रूप में पेश करने की कोशिश
ईरान खुद को पावरफुल इस्लामिक देश साबित करने में जुटा था. ईरान ने फिलिस्तीनी मुद्दा उठाकर इजराइल को सबका दुश्मन बनाने की कोशिश की, लेकिन यह कोशिश बहुत अधिक रंग नहीं लगाई. लेकिन खोमैनी ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर अपना दावा करना नहीं छोड़ा. हालांकि, तब भी दुश्मनी वैसी नहीं थी जैसी आज है. इसकी वजह थी सद्दाम हुसैन. दोनों देश सद्दाम हुसैन के इराक को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे.
दोनों देशों के बीच हालात तब बिगड़ने शुरू हुए जब इजराइल को यह पता चला कि ईरान उन देशों को हथियार सप्लाई कर रहा है जो उसके विरोधी हैं. मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि ईरान यमन, सीरिया और लेबनान को हथियार सप्लाई कर रहा था ताकि वहां के लड़ाके इजराइल को डराएं और धमकाएं.
80 के दशक में पहला आतंकी गुट इस्लामिक जिहाद ने फिलिस्तीन की मांग को लेकर इजराइल को परेशान करना शुरू किया. ईरान पीछे से उसे सपोर्ट कर रहा था. यही वो दौर था जब ईरान ने हिजबुल्लाह को तैयार किया, जिसने इजराइल को टार्गेट करना शुरू किया.
इजराइल का पक्ष
इजराइल ने सीधेतौर पर आरोप लगाया कि हिजबुल्लाह ने उन देशों में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया, जहां या तो यहूदी लोग रह रहे थे या फिर एम्बेसी हो. साल 1994 में अर्जेंटीना में हमले हुए और 85 यहूदी मारे गए. ईरान के नेताओं ने इस नरसंहार को झूठ बताया. ईरान यहीं नहीं रुका, उसने स्थानीय आतंकी संगठनों से इजराइल पर हमले कराने का काम किया.
इजराइल ने भी खुलकर बदला लेना शुरू किया. ईरान और उसके सहयोगियों को निशाना बनाना शुरू किया. हमलों की खबरें आने लगी. इजराइल से जुड़े इस्लामिक जिहाद समूह ने ब्यूनस आयर्स में इजराइल के दूतावास को उड़ाया. इसमें 29 लोगों की मौत हुई. कुछ समय पहले हिज्बुल्लाह नेता अब्बास अल मुसावी की हत्या हुई और इसके लिए इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद को जिम्मेदार ठहराया गया.इस तरह दोनों देशों के बीच दुश्मनी की खाई और गहरी हो गई.
हमास ने 7 अक्टूबर, 2023 को इजराइल पर अटैक किया. इजराइल ने इसका जवाब देते हुए गाजा पर हमले किए. इस तरह हालात और बिगड़ते गए.