20 फरवरी/इतिहास-स्मृति
अटल जी की लाहौर बस यात्रा
पाकिस्तान अपने जन्मकाल से ही भारत के प्रति शत्रुता रखता है। भारत के सभी प्रधानमंत्रियों ने शांति के प्रयास किये। युद्ध में उसे बुरी तरह पीटने के बाद भी उससे समझौते किये; पर कुत्ते की दुम की तरह वह कभी सीधा नहीं हुआ। इसी क्रम में अटल बिहारी वाजपेयी ने एक अनूठा प्रयास किया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले प्रधानमंत्री थे। पाकिस्तान में सबकी यह मान्यता थी कि संघ वाले उसे मिटा देना चाहते हैं। अतः अटल जी की सोच भी यही होगी; पर उन्होंने सदा शांति और मैत्री को प्रमुखता दी।
मई 1998 में पोखरण में किये परमाणु विस्फोट से भारत की छवि एक शक्तिशाली देश की बनी; पर भारत युद्धप्रिय न होकर शांति और मैत्री प्रिय देश है, अब यह भी सिद्ध करना था। पोखरण दो के बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु शक्ति प्राप्त कर ली। ऐसे में युद्ध का अर्थ महाविनाश ही था। अतः भारत सरकार ने दोनों देशों के बीच बस यात्रा शुरू करने की योजना बनायी, जिससे दोनों ओर के नागरिक अपने रिश्तेदारों से सुविधा से मिल सकें।
इस पहली बस को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अमृतसर से हरी झंडी दिखाने वाले थे। जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को यह पता लगा, तो उन्होंने अटल जी को फोन कर कहा कि जब दर तक आ रहे हो, तो क्या घर नहीं आओगे ? इस फोन से वातावरण बदल गया। प्रधानमंत्री ने अपनी कैबिनेट की बैठक बुलाई और स्वयं बस से लाहौर जाने की इच्छा व्यक्त की। यद्यपि दोनों देशों में काफी तनाव था, फिर भी भारत ने इस न्योते को स्वीकार कर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में बढ़त बना ली।
अब यात्रा की तैयारी नये सिरे से होने लगी। दोनों देशों के बीच में वाघा सीमा है। 20 फरवरी 1999 को अटल जी इस पार से ‘सदा ए सरहद’ नामक बस में बैठे। उधर खड़े नवाज शरीफ ने उनका स्वागत किया। फिर दोनों साथ-साथ लाहौर गये। अगले दिन दोनों ने ‘लाहौर घोषणापत्र’ पर हस्ताक्षर किये, जिसमें परमाणु हथियारों का प्रयोग न करने पर सहमति बनी।
शाम को हुए सार्वजनिक अभिनंदन समारोह में अटल जी ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘जंग न होने देंगे’ सुनाई। उन्होंने कहा कि वे एक ‘शांतिदूत’ बनकर यह संदेश लाये हैं कि दोनों देश अविश्वास छोड़ें, संघर्ष समाप्त हो, स्थायी शांति, सौहार्द और भाइचारे की भावना बढ़े तथा दोनों परस्पर सहयोग करते हुए उन्नति करें। इससे अटल जी ने पाकिस्तान के शांतिप्रिय नागरिकों का दिल जीत लिया।
भारत की ओर से इस बस में कई ऐसे लोग शामिल हुए, जो दोनों ओर समान रूप से लोकप्रिय थे। इनमें शत्रुघ्न सिन्हा, देवानंद, कुलदीप नैयर, सतीश गुजराल, जावेद अख्तर, मल्लिका साराभाई, कपिलदेव आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इस प्रतीकात्मक यात्रा का संदेश बड़ा व्यापक था। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच वाघा मार्ग से नियमित बस सेवा शुरू हुई। क्रमशः श्रीनगर और मुजफ्फराबाद बस सेवा तथा दिल्ली से लाहौर रेल सेवा भी शुरू हुई। भारत और बांग्लादेश के बीच भी कई जगह से आवागमन होने लगा। इस प्रकार शांति और मित्रता का नया दौर शुरू हुआ।
पर यह मित्रता वहां बैठे उन लोगों को पसंद नहीं आयी, जो हजार साल लड़कर भी भारत को मुस्लिम देश बनाना चाहते थे। उनमें से एक थे वहां के सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ। उन्होंने कुछ दिन बाद करगिल युद्ध का षड्यंत्र रचा। यद्यपि उसमें भी मुंह की खाकर दुनिया भर में उसका अपमान हुआ। इसके बाद भारत की संसद पर हमला हुआ। इससे भारत और पाकिस्तान के बीच रेल और बस के संपर्क टूट गये, जिससे आम नागरिकों को ही नुकसान हुआ।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत से कोई प्रधानमंत्री दस साल बाद उधर गया था; पर करगिल युद्ध ने इस सद्प्रयास पर पानी फेर दिया।
(लेखिका यूपी जागरण डॉट कॉम (A Largest Web News Channel Of Incredible BHARAT )की विशेष संवाददाता एवं राष्ट्रीय विचारक हैं )