
यही सोचकर एक रात चुपके से वो सोसायटी में घुसा । पाइप के सहारे फ्लैट तक पहुंचा और एक खिड़की तोड़कर अंदर दाखिल हो गया । पूरा फ्लैट खाली । अन्दर कोई सामान नहीं था सिवाय एक डबल बेड के । उसने डबल बेड खोला तो सन्न रह गया । पूरा डबल बेड नोटों से भरा पड़ा था । अब इन नोटों को ले कैसे जाया जाए ?
उसने फ्लैट में पड़ी सीमेंट और पुट्टी की कुछ खाली बोरियों में जल्दी से जितना नोटों से भर सकता था भरा और भाग आया ।
इस दौलत से उसने सबसे पहले अपने पुराने मकान को नया करवाना शुरू किया । एक स्विफ्ट और एक बुलेट मोटरसाइकिल भी ले ली । अच्छे कपड़े पहनना शुरू कर दिया और घरवालों के लिए मंहगे मोबाइल भी ले लिए । अड़ोसी–पड़ोसियों को कुछ शक हुआ कि इस फुटकरिये कबाड़ी के पास इतना पैसा कहां से आया ? सिर्फ दस–बारह दिन में ही इसकी लाइफ स्टाइल ऐसे कैसे बदल गई ?
किसी ने पुलिस ने मुखबिरी कर दी । पुलिस ने घर पर छापा मारा तो नोटों के बंडल ही बंडल बरामद हुए……… थाने ले जाकर उसकी तगड़ी खातिरदारी की गई और पूछा गया कि बता कहां से लाया ये पैसा ?
साहब अल्लाह कसम खा के केह रिया हूं एक सूने फ्लैट में एक डबल बेड में भोत नोट भर के रखे हुए हैं वहीं से चुरा कर लाया हूं ।
पुलिस हैरान । कितने लाया ?
साहब कुछ भी न ला पाया ? सिर्फ 85 लाख ही ला पाया । उससे ज्यादा तो अभी भी वहां भरे रखे हैं ।
दुबारा क्यों नहीं गया ?
खूब चक्कर लगाए साहब लेकिन रात के अंधेरे में सोसाइटी में घुसने का मौका हाथ नहीं लगा ।
पुलिस ने उसकी बताई सोसाइटी में जाकर उस सूने फ्लैट की पड़ताल की तो पता चला कि फ्लैट किसी हाईकोर्ट के जज के नाम है ।
पुलिस वालों ने मीडिया तो बुलवा ली लेकिन जब पुलिस को पता चला कि फ्लैट हाईकोर्ट के जज का है तो उनकी सिट्टी–पिट्टी गुम हो गई । साहब की इन्वेस्टिगेशन कैसे हो सकती है क्योंकि ये तो भारत में न्याय संहिता के खिलाफ है ?
जज के निर्णय पर सवाल नहीं उठाए जा सकते , सिर्फ उच्च अदालत में अपील की जा सकती है । जजों की संपत्ति की जांच नहीं की जा सकती तो फिर न फिर इनकम टैक्स वालों को बुलाने का कोई फायदा न ED वालों को ।
किसी तरह पुलिस ने जज साहब को बुलवाया । जज साहब पूरी न्यायायिक अकड़ के साथ आए । आते ही पुलिस बालों को अपनी जजगीरी का प्रदर्शन करते हुए धमकाया , फिर उस कबाड़ी की मां–बहन की । पुलिस को बताया कि गया पैसा इस कबाड़ी से वसूलो और ऐसा केस बनाओ कि ये कबाड़ी दो–चार के लिए अन्दर जाए । पैसे चोरी का केस न बनाओ। सूने फ्लैट में नल की टोटियां , बिजली बोर्ड के स्विच चोरी करने का केस दर्ज करो इस पर ।
जज साहब के साथ लाए उनके अपने चाकरों ने बेड में से नोटों के बंडल समेटे और चलते बने………
पुलिस अपना सा मुंह लेकर रह गई…….. जज साहब के मुताबिक कबाड़ी से शेष रकम वसूली गई और उस पर जैसा जज साहब ने कहा वैसा ही केस बनाकर जेल भेज दिया गया ।
अब आप ये न पूछना कि एक हाईकोर्ट के जज के यहां इतने नोट कहां से आए कि उसे अपने सूने पड़े फ्लैट में वे बंडल डबल बेड में भरकर रखने पड़े ।
जैसे आप ये नहीं पूछ सकते कि दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के यहां बोरियों में भरे नोट कहां से आए ?
क्योंकि इस देश में कानूनन जज साहेबान से ये नहीं जाना जा सकता कि जब आपके पास कितनी संपति है ? कहां–कहां है ? और सरकारी तनख्वाह पाने के अलावा आप ऐसा क्या धंधा करते हैं जो आपके यहां भर–भर के नोटों के बंडल निकलते हैं ?
ये मत पूछना कभी , नहीं तो ये कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट होगा जिसकी आपको सख्त सजा मिल सकती है…….. इसलिए आप कहते रहिए और आपको कहना हो होगा कि भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका पूरी तरह से निष्पक्ष और ईमानदार है ।