जौनपुर का डेहरी गांव फिर सुर्खियों में:महाकुंभ में संगम स्‍नान के लिए जाना बड़े सम्‍मान की बात है-अब्‍दुल्‍ला दुबे

   डेहरी गांव में रहने वाले अब्‍दुल्‍ला दुबे और नौशाद अहमद दुबे समेत कई मुस्लिम समुदाय के लोग प्रयागराज महाकुंभ में शिरकत करने जाएंगे। उनका कहना है कि महाकुंभ में संगम स्‍नान के लिए जाना बड़े सम्‍मान की बात है!

  • जौनपुर के मुस्लिम समुदाय के लोग महाकुंभ स्‍नान करने जाएंगे
  • डेहरी गांव के लोग अपने पूर्वजों का नाम यूज करते हैं
  • नौशाद अहमद और अब्‍दुल्‍ला दुबे सरनेम लगाते हैं

जौनपुर: यूपी के जौनपुर में एक गांव है डेहरी। केराकत क्षेत्र में पड़ने वाले इस गांव में कई मुस्लिम परिवार ऐसे हैं जो अपने नाम के साथ तिवारी, शुक्‍ला और दुबे सरनेम जोड़ते हैं। उनका कहना है कि उनके पुरखे हिंदू थे, इसलिए वह हिंदू सरनेम लगाते हैं। मुस्लिम समुदाय के करीब 36 लोग अब प्रयागराज महाकुंभ में संगम स्‍नान की तैयारी भी कर रहे हैं। डेहरी गांव में रहने वाले नौशाद अहमद दुबे का कहना है कि महाकुंभ में संगम स्‍नान के लिए जाना सम्‍मान की बात है। कुंभ तो भारतीय संस्‍कृति, सभ्‍यता की पहचान है।

इसी तरह अब्‍दुल्‍ला दुबे ने बताया कि वह विशाल भारत संस्‍थान के एक कार्यकर्ता हैं। मैं महाकुंभ में अवश्‍य जाऊंगा। वहीं, नौशाद अहमद दुबे के मुताबिक, उदासीन अखाड़ा ने कहा है कि डेहरी के कुछ लोगों और विशाल भारत संस्‍थान से जुड़े सदस्‍यों को महाकुंभ में संगम स्‍नान के लिए निमंत्रण भेजेंगे। यह कदम समाज में एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने वाला होगा। भारतीय संस्‍कृति और परंपराओं से जुड़ने से ना केवल समाज में सकारात्‍मक संदेश जाएगा और प्रेरणा का काम करेगा।

शादी के कार्ड पर लिखा था दुबे सरनेम

आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले डेहरी गांव के नौशाद अहमद ने शादी के कार्ड पर नौशाद अहमद दुबे लिखकर सभी का ध्‍यान अपनी तरफ खींचा था। उनका कहना है कि उनके पूर्वज हिंदू थे। इसलिए अब वह अपने नाम के साथ गोत्र का नाम भी लिख रहे हैं। सात पीढ़ी पहले हमारे पूर्वजों में से एक लाल बहादुर दुबे हिंदू से मुस्लिम कनवर्ट हो गए थे। वह अपना नाम लाल मोहम्‍मद लिखने लगे थे।

शेख, पठान ये हमारे टाइटिल नहीं: इसरार अहमद दुबे

गांव के ही रहने वाले इसरार अहमद दुबे का कहना है कि हम सभी गांव वालों से अपील करेंगे कि अपनी जड़ों से जुड़े शेख, पठान, सैयद ये हमारा टाइटिल नहीं है। विदेश से आए शासकों ने ये टाइटिल दिया है। इसलिए अपने टाइटिल को खोजकर अपने जड़ों से जुड़ें जिससे हमारा देश मजबूत हो और हम आपस में सौहार्द पूवर्क रह सकें।