जो सुन रहे हम आज,ये छटपटाहट है।हमारे जगने से बेचैनी हैये उसीकी आहट है.. विक्रम सिंह “विक्रम”की बेहतरीन राष्ट्रवादी कविता का आन्नद ले
जो सुन रहे हम आज, ये छटपटाहट है। हमारे जगने से बेचैनी है ये उसीकी आहट है।। शुर में मिलते न शुर, उसीकी बौखलाहट है। ये छटपटाहट है।। यकीन था सोते रहेंगें, जागे तो घबराहट है। ये छटपटाहट है।। सच्चाई समझ में आई, उसीकी कुलबुलाहट है। ये छटपटाहट है।। आंखें चौधिया रही अब, हमारी जगमगाहट…