पाकिस्तान लगातार चीन से भारत के खिलाफ जंग की स्थिति में मदद मांग रहा है। कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन ने पाकिस्तान एयरफोर्स के लिए पीएल-15 मिसाइलें भेजी हैं। वहीं पाकिस्तान के लोग चीन से सिंधु समझौता तोड़ने के खिलाफ भारत का पानी रोकने की भी मांग कर रहे हैं। लेकिन चीन का मूड बदला नजर आ रहा है।
बीजिंग: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान युद्ध के मुहाने पर हैं। आशंका है कि परमाणु शक्ति वाले दोनों देश जंग में फंस सकते हैं। लिहाजा पाकिस्तान ने अपने ‘हर मौसम के साथी’ चीन का समर्थन हासिल करने के लिए हाथ पैर मारना शुरू कर दिया है। चीन डिप्लोमेसी के स्तर पर और शुरूआती सैन्य मदद में पाकिस्तान की मदद भी कर रहा है।
चीन ने यूनाइटेड नेशंस में पाकिस्तान को मदद दी है और पाकिस्तान का दावा है की चीन ने आपातकाली स्थिति में पीएल-15 मिसाइलों की भी डिलीवरी की है। लेकिन ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन पाकिस्तान की इससे ज्यादा मदद करने की नहीं सोच रहा है। पाकिस्तान आर्थिक तौर पर चीन पर काफी ज्यादा निर्भर है, लेकिन बदलते जियो-पॉलिटिकल हालातों में भारत और चीन के रिश्ते भी बदल गये हैं। गलवान घाटी झड़प के बाद अब दोनों देशों के संबंध सामान्य हो रहे हैं और दोनों देश मजबूत व्यापारिक संबंध बनाने की तरफ बढ़ चुके हैं। लिहाजा एक संभावना बन रही है कि चीन, युद्ध के हालात में पाकिस्तान से एक समुचित दूरी बनाकर रखे।
हालांकि, इतिहास में चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में यूएनएससी की 1267 प्रतिबंध व्यवस्था के तहत कई लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों को वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित करने की भारत की अपील को ब्लॉक कर चुका है। और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) प्रमुख मसूद अजहर को यूएनएससी में बचाना इसका एक बड़ा उदाहरण है। लेकिन माना जा रहा है कि इस बार चीन भारत का रुख भारत को लेकर थोड़ा बदला हो सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद चीन के लिए आर्थिक रास्ता मुश्किलों से भरा हुआ है और चीन हर हाल में अपनी अर्थव्यवस्था को बचाना चाहता है और अपनी सप्लाई चेन को बनाए रखने के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में चीन के लिए भारत से पंगा लेना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।
पाकिस्तान को ‘धोखा’ दे सकता है चीन?
पहलगाम आतंकी हमले के दो दिनों के बाद जब भारत ने जी-20 के देशों के डिप्लोमेट्स को हमलों की जानकारी देने के लिए बुलाया था, उसमें चीन को भी बुलाया गया था। जबकि इससे पहले 2016 के उरी आतंकी हमले के बाद भी चीनी दूत नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग का हिस्सा नहीं थे।
वे 2019 के पुलवामा आतंकी हमले के बाद ब्रीफिंग में शामिल हुए थे। इस बार भी 100 से ज्यादा विदेशी दूत, जिनमें यूनाइटेड नेशंस के वीटो पावर वाले P-5 देश के प्रतिनिधि भी शामिल थे, वो भारतीय विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग में शामिल हुए थे। चीनी डिप्लोमेट ने भी इसमें हिस्सा लिया था। भारतीय विदेश मंत्री पिछले कुछ महीनों में कई बार चीन के साथ संबंधों के ‘सकारात्मक’ दिशा में बढ़ने की बात कर चुके हैं।
भारत में चीनी दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने भी एस. जयशंकर की बातों से सहमति जताई थी और जब पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने एक पॉडकास्ट में चीन भारत संबंधों की महत्ता के बारे में बात की थी, तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने इसकी जमकर तारीफ की थी।
इसके अलावा पाकिस्तान में बढ़ती अराजकता, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद से भी चीन परेशान रहा है। चीन ने पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है और पाकिस्तान उन पैसों को चुकाने में नाकाम साबित हो रहा है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि चीन, पूरी तरह से भारत के साथ आ जाएगा, लेकिन युद्ध की स्थिति में चीन अगर पाकिस्तान से थोड़ी भी दूरी बनाता है तो उससे भारत को जबरदस्त फायदा मिल सकता है।
सोमवार को चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष इशाक डार के साथ टेलीफोन पर बात करते हुए पहलगाम आतंकी हमले में शहबाज शरीफ के ‘निष्पक्ष जांच’ की मांग का समर्थन किया था, लेकिन भारतीय एक्सपर्ट्स का मानना है कि युद्ध के दौरान चीन, पाकिस्तान के समर्थन में दूसरा मोर्चा खोलेगा, इस बात का डर हमेशा से रहा है, लेकिन अगर चीन दूसरा फ्रंट नहीं खोलता है, इतना ही भारत के लिए काफी होगा।