भाई-बहन का असली उत्सव भ्रातृ द्वितीया अर्थात् भईया दूज की हार्दिक शुभकामनाएँ।
भईया दूज का महत्व समाप्त करने की कुचेष्टा से ही रक्षाबंधन को भाई-बहन का उत्सव बनाने का षड्यंत्र रचा गया।
रक्षाबंधन में तो पुरोहित द्वारा समाज के लोगों को रक्षासूत्र बांधने का विधान है। अकबर-कर्णावती के भाई-बहन का झूठा आख्यान सुनाकर इसे भाई-बहन के उत्सव के रूप में प्रचलित किया गया और भाई-बहन के इस अनोखे उत्सव भ्रातृ द्वितीया को दबाने की कोशिश की गई।
भ्रातृ द्वितीया के दिन बहन नारी समाज के शत्रु रूप में श्री राधा रानी के पति इयान गोप के गोबर की प्रतिमा भूमि पर बनाकर उसपर रंगीनी की कांटेदार लताओं को रखकर मूसल से कूटती हैं और साथ में भाईयों के हित के गीत गाती हैं। राधा रानी को इयान ने बहुत तंग किया था, बाद में सब सखियों ने मिलकर इयान को इसी तरह कूटा था और अपने भाईयों की रक्षा की थी।
यर नारी पराक्रम के उद्भव का उत्सव है। स्वरक्षा का पाठ पढ़ाने वाला उत्सव है। भ्रातृ द्वितीया तो नारी की अमोघ विजयी शक्ति का उत्सव है।
इस उत्सव के अंत में सभी बहनें प्रायश्चित करती हैं, अपने जिह्वा के अग्रभाग पर रंगीणी का कांटा चुभाकर। वह कहती हैं कि वर्षभर में गलती से भाईयों को कुछ भी खराब कहा होगा, तो उसके लिए ही अपने जीभ को सजा देती हैं, रंगीणी का कांटा चुभाकर।
यह एक्युपंक्चर का आरम्भिक उपक्रम है और इससे लार ग्रन्थियों का स्राव ठीक हो जाता है, पाचन में सुधार हो जाता है और थायरायड की समस्या हल हो जाती है। यह अद्भूत उत्सव है।