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भगवान शिव के मुख से प्रकट हुई थी कालाग्नि, सृष्टि के संहार और सृजन दोनों से जुड़ी है ये दिव्य ज्वाला

   भगवान शिव की एक विनाशक शक्तियों में से एक है शिव के मुख से प्रकट हुई भयंकर ज्वाला, जिसे कालाग्नि के नाम से जाना जाता है। इसका प्रकट होना एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पौराणिक घटना है, लेकिन ये घटना क्यों हुई और कालाग्नि के अन्य दूसरे पहलू क्या हैं, चलिए जानते हैं यूपी जागरण डॉट कॉम की विशेष संवाददाता एवं धार्मिक मामलो की जानकार मंजूलता शुक्ला से ….

भगवान शिव की कालाग्नि, जिसे रुद्राग्नि के नाम से भी जाना जाता है, उनके मुख से प्रकट हुई एक प्रचंड ज्वाला है।
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दानव का वध करने के लिए कालाग्नि को उत्पन्न किया था।
कालाग्नि विनाश और सृजन का प्रतीक है, जो भगवान शिव की संहारक शक्ति को दर्शाती है।
महाभारत में भी कालाग्नि का वर्णन मिलता है, जिसमें भगवान शिव ने अर्जुन को इसकी शक्ति और महत्व के बारे में बताया।

मंजूलता शुक्ला

भगवान शिव उद्धारक माने जाते हैं और इस कारण उनकी कई विनाशक और रहस्यमयी शक्तियां हैं। उनमें से उनकी एक शक्ति है कालाग्नि, जिसे रुद्राग्नि के नाम से भी जाना जाता है। यह ज्वाला भगवान शिव के मुख से प्रकट हुई है। रुद्राभिषेक पूजा के दौरान भगवान शिव की आराधना करते समय कालाग्नि का ध्यान और स्तुति की जाती है। इससे भक्तों को भगवान शिव की कृपा और सुरक्षा प्राप्त होती है। बेहद कम लोग भगवान शिव की इस शक्ति के बारे में जानते हैं और ये भी कि इसकी उत्पत्ति कैसे हुई और इसका आध्यात्मिक महत्व क्या है। तो चलिए जानते हैं…

शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दानव का वध करने के लिए अपने मुख से कालाग्नि को उत्पन्न किया था। यह ज्वाला इतनी प्रचंड और शक्तिशाली थी कि उसने त्रिपुरासुर का संहार कर दिया। शिव पुराण के अनुसार, तीन असुरों ने अपनी शक्ति और छल से तीन अभेद्य नगरों (त्रिपुर) का निर्माण किया था। ये असुर धर्म और मानवता के विनाश में लगे हुए थे। देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे त्रिपुरासुरों का अंत करें।

शिव ने अपनी तीसरी आँख से भयंकर ज्वाला उत्पन्न की, जिसने त्रिपुर का संहार किया। एक अन्य कथा के अनुसार, जब कामदेव ने शिव की तपस्या को भंग करने का प्रयास किया, तो शिव के क्रोध से उनके मुख से भयंकर ज्वाला प्रकट हुई, जिसने कामदेव को भस्म कर दिया। महाभारत में भी कालाग्नि का वर्णन मिलता है। भगवान शिव ने अर्जुन को कालाग्नि का दर्शन कराया और उसे उसकी शक्ति और महत्व के बारे में बताया।

कालाग्नि या रुद्राग्नि का महत्व
    भगवान् शिव की ये ज्वाला विनाश और सृजन का प्रतीक है। भगवान शिव को सृष्टि के विनाशक और सृजनकर्ता दोनों रूपों में देखा जाता है और कालाग्नि इन दोनों शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है। शिव के मुख से यह ज्वाला तब प्रकट हुई जब सृष्टि में अधर्म, पाप और अज्ञानता का अत्यधिक विस्तार हो गया था। इस घटना को शिव की संहारक शक्ति से जोड़ा जाता है, जो संतुलन बनाए रखने के लिए सृष्टि का विनाश करती है। भगवान् शिव के मुख से प्रकट होने वाली ज्वाला को सृष्टि के अंत (प्रलय) का प्रतीक माना गया है। इसे कालाग्नि रुद्र भी कहा जाता है, जो प्रलय के समय ब्रह्मांड का समापन करता है।

यह ज्वाला अत्यंत उग्र, विनाशकारी और दैवीय ऊर्जा से भरपूर मानी जाती है। इसे शिव की तीसरी आँख से निकलने वाली अग्नि के रूप में भी देखा जाता है, जो बुराई को भस्म कर देती है। रुद्राग्नि अधर्म, अज्ञानता, और नकारात्मकता का नाश करने वाली शक्ति है। यह ज्वाला उन सभी नकारात्मक तत्वों को समाप्त करती है जो धर्म और सत्य के मार्ग में बाधा बनते हैं। कालाग्नि आध्यात्मिक जागरण और आत्मज्ञान का प्रतीक है। इसका ध्यान और साधना करने से साधक को आत्मा की शुद्धि और उच्च आध्यात्मिक स्तर की प्राप्ति होती है।