ट्रंप की नीतियों से निपटने की तैयारी में भारत, ब्रिक्स मुद्रा पर विवाद बढ़ा

   ट्रंप द्वारा भारत की बार-बार आलोचना किए जाने के मद्देनजर भी सरकारी विभागों के बीच चर्चा हो रही है। उन्होंने भारत को उच्च शुल्क वाला देश बताया था।

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति के किसी भी प्रभाव से निपटने के लिए भारत विभिन्न परि​स्थितियों का आकलन कर रहा है। वित्त मंत्रालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय आदि सरकारी विभागों ने जनवरी में ट्रंप के कार्यभार संभालने के बाद उनकी कार्रवाइयों का अनुमान लगाने के लिए मंथन पहले ही शुरू कर दिया है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘वि​भिन्न मंत्रालयों के बीच मंथन पहले ही शुरू हो चुका है। यह अब तक का सबसे बड़ा घटनाक्रम है जो भारत की आर्थिक नीति के साथ-साथ नीतिगत निर्णयों को भी प्रभावित करेगा।’

सरकार ट्रंप के चुनावी भाषणों और उनके पिछले कार्यकाल (2017 से 2021 तक) के कामकाज का बारीकी से आकलन कर रही है। हमें नहीं पता है कि इसका नतीजा क्या होगा क्योंकि ट्रंप के बारे में अंदाजा लगाना कठिन है। मगर हम तैयार रहना चाहते हैं।’

शनिवार को ट्रंप ने एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहा कि ब्रिक्स देशों को वादा करने की जरूरत है कि वे नई ब्रिक्स मुद्रा नहीं बनाएंगे और न ही डॉलर की जगह किसी अन्य मुद्रा का समर्थन करेंगे। अगर वे नहीं मानते हैं तो उन्हें ब्रिक्स देशों के उत्पादों पर 100 फीसदी शुल्क का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर जारी पोस्ट में यह बात कही।

ट्रंप द्वारा भारत की बार-बार आलोचना किए जाने के मद्देनजर भी सरकारी विभागों के बीच चर्चा हो रही है। उन्होंने भारत को उच्च शुल्क वाला देश बताया था। उन्होंने 2020 में भारत को ‘टैरिफ किंग’ कहा था। हाल में भारत को विदेशी वस्तुओं पर सबसे अ​धिक शुल्क लगाने वाला और आयात शुल्क का दुरुपयोग करने वाला देश कहा था। साथ ही उन्होंने जवाबी शुल्क लगाने की भी धमकी दी थी।

अपने चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने सभी देशों से आयात पर 10 से 20 फीसदी और चीन से वस्तुओं के आयात पर 60 फीसदी शुल्क लगाने का वादा किया था।
अ    ब तक भारत शुरुआती शुल्क वृद्धि से बचा हुआ है क्योंकि पिछले सप्ताह ट्रंप ने घोषणा की थी कि 20 जनवरी को पदभार ग्रहण करने के बाद वह कनाडा एवं मेक्सिको पर 25 फसदी और चीन पर 10 फीसदी शुल्क बढ़ाएंगे।

भारत की ओर से लचीलेपन का संकेत देते हुए सरकारी अधिकारियों ने कहा कि भारत उन उत्पादों पर बढ़े हुए शुल्क को वापस ले सकता है जो घरेलू उद्योग को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मौजूदा शुल्क दरों का उद्देश्य उद्योग को चीनी वस्तुओं की डंपिंग से बचाना था। एक अन्य सरकारी

अ​धिकारी ने कहा, ‘अगर कोई ऐसी वस्तु है जो हमारे पास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है और दरें अ​धिक है तो हम उस पर विचार करेंगे। कई ऐसे उत्पाद हैं जहां शुल्क दरें अमेरिका के ​खिलाफ नहीं हैं। यदि चीन से डंप होगा तो हम शुल्क बढ़ाएंगे। अन्यथा यह दोनों पक्षों के लिए नुकसानदेह होगा।’ वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा था कि शुल्क दरों में इजाफा संबंधी भारत के नीतिगत निर्णय की मंशा आयात पर अंकुश लगाना नहीं है।