एक शख्स को बचाने में इतनी दिलचस्पी क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने संदेशखाली मामले में ममता सरकार को सुना दिया

   संदेशखाली मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सीबीआई जांच के खिलाफ दायर याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। संदेशखाली में जमीन हड़पने और जबरन वसूली के मामलों की कोर्ट की निगरानी में ही सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) जांच जारी रहेगी।

नई दिल्ली/कोलकाता: सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने संदेशखाली में महिलाओं के खिलाफ अपराध और जमीन हड़पने के आरोपों पर CBI जांच का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथनकी बेंच ने पश्चिम बंगाल सरकार के वकील अभिषेक सिंघवी से कहा, यह सब संदेशखाली से संबंधित है। आपने (राज्य ने) महीनों तक कुछ नहीं किया।

सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कलकत्ता हाई कोर्ट की ओर से CBI को जारी किए गए दूरगामी निर्देश संदेशखाली में एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट के अधिकारियों पर हमले से संबंधित दो एफआईआर तक ही सीमित रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि जिस आदेश की (हाई कोर्ट के) बात हो रही है वह राशन घोटाले से जुड़ा है। सिंघवी ने कहा कि कथित घोटाले में 43 एफआईआर दर्ज की गई थीं।

सुप्रीम कोर्ट खारिज की याचिका

बेंच ने कहा कि एफआईआर चार वर्ष पहले दर्ज की गई थीं। आरोपी कौन हैं? गिरफ्तारियां कब की गईं? किसी को बचाने में राज्य की दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए? उसने कहा कि पिछली सुनवाई में जब कोर्ट ने यह प्रश्न पूछा था तो राज्य सरकार के वकील ने कहा था कि मामले को स्थगित किया जाए। बेंच ने राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका खारिज कर दी और साफ किया कि हाई कोर्ट के आदेश में की गई कोई टिप्पणी जांच में CBI को प्रभावित नहीं करेगी। बेंच ने कहा, ‘धन्यवाद। याचिका खारिज की जाती है।

ममता सरकार ने याचिका में कही थी ये बात

सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के 10 अप्रैल के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को याचिका पर सुनवाई करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार से कहा था कि निजी क्षेत्र के कुछ लोगों के हितों को बचाने के लिए राज्य को एक याचिकाकर्ता के रूप में क्यों आना चाहिए? राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में कहा था कि हाई कोर्ट के आदेश ने पुलिस बल समेत राज्य के संपूर्ण तंत्र का मनोबल कमजोर कर दिया।