कश्मीर पर चीन-पाकिस्तान कर रहे कौन सी साजिश, जिस पर मिला भारत से तगड़ा जवाब

    हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ चीन के दौरे पर गए. वहां चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग के साथ मुलाकात के बाद उन्होंने संयुक्त घोषणापत्र जारी किया, जिसकी भाषा ये बताती है कि दोनों देश मिलकर फिर से कश्मीर से लेकर लदाख तक के इलाके में साजिश करना चाहते हैं. भारत ने तुरंत इसका तगड़ा जवाब दिया. जानते हैं क्या है पूरा मामला.

चीन और पाकिस्तान की कश्मीर को नए तरीके से विवादित करने की कोशिशचीन ने कश्मीर और लदाख में भारत की कार्रवाई का विरोध किया, क्यों उसने ऐसा कियाभारत ने किस तरह दिया तगड़ा जवाब और किस तरह इसे बताया अपना

हाल बेहाल और आर्थिक तंगहाली से परेशान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ जून के पहले हफ्ते में चीन की यात्रा पर गए. ताकि मुश्किल में पड़े पाकिस्तान के लिए वहां झोली फैला सकें. चीन भी लगातार पाकिस्तान को झटके देता रहा है. अब पाकिस्तान जब उसके सामने पूरी तरह समर्पण की स्थिति में है तो चीन भी उसके कंधे पर रखकर बंदूक चला रहा है. साथ ही भारत के खिलाफ पाकिस्तान के जरिए फायदा उठाने के लिए साजिश में लग गया है.

इसका अंदाज उस संयुक्त घोषणा पत्र से लगता है जिस पर शहबाज और जिनपिंग ने 07 जून को आपस में मिलकर साइन किए. दोनों देशों ने कश्मीर और लदाख को इतिहास का विवाद बताया. इन इलाकों में किसी भी एकतरफा कार्रवाई करार की निंदा की. इन इलाकों के लिए द्विपक्षीय वार्ता पर जोर दिया.

जाहिर है कि आधिकारिक तौर पर भारत में शामिल ये इलाके दोनों की दुखती रग हैं. उन पर वो लगातार दावे करते रहे हैं. अब साजिश करके इन इलाकों को विवादित बनाकर उस पर दावा जताना चाहते हैं. दोनों नए सिरे से कश्मीर और उन इलाकों को लेकर साजिश में जुट गए हैं. हालांकि भारत ने दो टूक कह दिया कि ये इलाके भारत के संप्रभु क्षेत्र हैं. लिहाजा इनके बारे में बात करने का हक ना तो पाकिस्तान को है और ना ही चीन को.

हालिया घटनाक्रम क्या है
7 जून 2024 को जारी एक संयुक्त बयान में चीन ने पाकिस्तान का साथ देते हुए कहा, जम्मू और कश्मीर विवाद इतिहास की उपज है. इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के अनुसार उचित और शांतिपूर्वक हल किया जाना चाहिए”.

भारत ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों के लिए चीन और पाकिस्तान के इन “अनुचित संदर्भों” को दृढ़ता से खारिज कर दिया. भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है ये भारत के अभिन्न और अविभाज्य हिस्से थे, हैं और हमेशा रहेंगे”. भारत ने जोर देकर कहा, “किसी अन्य देश को इस पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है”.

भारत ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के समझौते का भी कड़ा विरोध किया, क्योंकि इसकी कई परियोजनाएं कश्मीर के उस इलाके में हैं, जिस पर पाकिस्तान ने जबरन और अवैध कब्जा किया हुआ है.भारत ने इन क्षेत्रों पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे को मजबूत करने या वैध बनाने के किसी भी प्रयास को खारिज कर दिया.

सवाल – चीन और पाकिस्तान के बीच ये हालिया घटनाक्रम क्या बताता है?
ये हालिया घटनाक्रम भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच विशेष रूप से कश्मीर क्षेत्र को लेकर लंबे समय से चले आ रहे क्षेत्रीय विवादों और तनाव के बारे मेंम बताता है. साथ ही ये भी बताता कि एक ओर चीन कश्मीर पर पाकिस्तान के अवैध कब्जे को सही मानता है तो लदाख और उन इलाकाई विवादों में पाकिस्तान की हां में हां मिलवाना चाहता है, जिस पर लंबे समय से वह खुद का दावा कर रहा है. इन इलाकाई अधिकार के विवाद को लेकर अतीत में इन देशों के बीच युद्ध भी हो चुका है.

सवाल – भारत का इस पर क्या जवाब रहा है?
– भारत ने चीन-पाकिस्तान के जम्मू-कश्मीर और लद्दाख संबंधी बयान को दृढ़ता से खारिज कर दिया है. इन क्षेत्रों पर अपनी संप्रभुता का दावा किया. साथ पाकिस्तान के अवैध कब्जे को वैध बनाने के किसी भी प्रयास का विरोध किया.

क्या है ऐतिहासिक घटनाक्रम
इसे जानने के लिए हमें इन बातों के बारे में जानना होगा
– 1947 ब्रिटिश भारत का विभाजन – विभाजन के कारण पाकिस्तान और भारत का निर्माण हुआ, जिसमें कश्मीर एक विवादित क्षेत्र था. कश्मीर के महाराजा ने शुरू में साफ कहा कि वो किसी भी देश में शामिल नहीं होंगे बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच आजाद रहेंगे. लेकिन बाद जब पाकिस्तान ने कबायलियों के जरिए स्पांसर हमला कराया तो महाराजा हरिसिंह को कश्मीर को भारत में शामिल करने पर सहमत हो गए.
– 1949 युद्धविराम रेखा (सीएफएल) – सीएफएल की स्थापना जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में हिंसा को अस्थायी रूप से समाप्त करने के लिए की गई थी.अब ये रेखा कश्मीर को विभाजित करते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच वास्तविक सीमा रेखा बन गई.
– 1963 समझौता- चीन ने ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को सौंपते हुए पाकिस्तान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने क्षेत्र में क्षेत्रीय मुद्दों को और अधिक जटिल बना दिया.
– 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध – पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी में असंतोष का फायदा उठाया. सशस्त्र घुसपैठिये भेजे, जिससे पूर्ण पैमाने पर युद्ध हुआ. 1966 में ताशकंद घोषणा के तहत शत्रुता अस्थायी रूप से समाप्त हो गई, लेकिन तनाव जारी है.
– 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध – भारत और पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर एक और संक्षिप्त युद्ध लड़ा, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश की स्थापना हुई. इस संघर्ष ने संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया. किसी भी टकराव का खतरा बढ़ गया.
– 1972 शिमला समझौता- समझौते ने नियंत्रण रेखा (LOC) की स्थापना की, जो एक अस्थायी सैन्य नियंत्रण रेखा थी जिसने कश्मीर को दो प्रशासनिक क्षेत्रों में विभाजित कर दिया. हालांकि संघर्ष जारी रहा. दोनों पक्ष अक्सर एक-दूसरे पर संघर्ष विराम के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं.
– 1999 कारगिल युद्ध – पाकिस्तानी सैनिकों ने एलओसी पार कर ली, जिससे कारगिल युद्ध छिड़ गया. हालांकि दोनों देशों ने 2003 से एक नाजुक संघर्ष विराम बनाए रखा है, वे नियमित रूप से विवादित सीमा पर गोलीबारी करते हैं.
– 2019 अनुच्छेद 370 को खत्म कर देना – भारत ने आर्टिकल 370 खत्म करके जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द कर दिया, राज्य की अपनी संपत्ति और निपटान कानूनों को निर्धारित करने की क्षमता को हटा दिया. इस कदम को कश्मीर को भारत में एकीकृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया. पाकिस्तान ने इसका कड़ा विरोध किया.

सवाल – चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा क्या है, क्या ये कश्मीर भूमि पर है?
– चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) सीधे कश्मीर भूमि पर संचालित नहीं होता. हालांकि CPEC के तहत कुछ परियोजनाएं पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में स्थित हैं, जिस पर भारत अपना दावा करता है. भारत ने संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की चिंताओं का हवाला देते हुए पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में सीपीईसी परियोजनाओं पर लगातार अपना विरोध जाहिर किया है.
– कोहाला जलविद्युत परियोजना: 1,100 मेगावाट की इस परियोजना का निर्माण चीन के थ्री गॉर्जेस कॉर्पोरेशन द्वारा पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में किया जा रहा है. इस परियोजना को 2020 में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर, चीन और थ्री गोरजेस कॉर्पोरेशन की सरकारों द्वारा अनुमोदित किया गया था.
– माहल हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट: 640 मेगावाट की यह परियोजना भी सीपीईसी का हिस्सा है और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में स्थित है.
– काराकोरम राजमार्ग: काराकोरम राजमार्ग, जो चीन के शिनजियांग प्रांत को उत्तरी पाकिस्तान से जोड़ता है, सीपीईसी का एक प्रमुख घटक है. भारत गिलगित-बाल्टिस्तान में इस राजमार्ग में चल रहे कामों पर आपत्ति जताता है, इसे वह अपने क्षेत्र में होने का दावा करता है.

सवाल – आखिर चीन क्यों कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता रहता है?
– चीन कई ऐतिहासिक और रणनीतिक कारणों से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता है. चीन और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से गठबंधन है, जो 1962 के चीन-पाकिस्तान सीमा युद्ध के समय से चला आ रहा है. चीन परंपरागत रूप से पाकिस्तान का सबसे करीबी सहयोगी रहा है. दोनों के रिश्ते विभिन्न समझौतों और सैन्य सहयोग से जरिए मजबूत ही हुए हैं.

भू-राजनीतिक हित- चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना, जिसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बुनियादी ढांचा विकास और ऊर्जा परियोजनाएं शामिल हैं. ये प्रोजेक्ट्स चीन के लिए अहम हैं, वह इन निवेशों की रक्षा करना चाहता है.

सुरक्षा संबंधी चिंताएं – चीन की चिंता इस बात पर ज्यादा है कि चूंकि इस इलाके में उसके ऐसे प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं जो रणनीतिक और आर्थिक पहलू से जरूरी हैं, लिहाजा अगर भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष हुआ तो इस क्षेत्र में उसके अपने हित प्रभावित होंगे.

पाकिस्तान का समर्थन करके चीन शक्ति संतुलन बनाए रखना चाहता है और अपने आर्थिक और रणनीतिक उद्देश्यों को बचाए रखना भी चाहता है. चीन और पाकिस्तान के बीच महत्वपूर्ण आर्थिक संबंध हैं, चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. कुल मिलाकर कश्मीर पर पाकिस्तान के लिए चीन का समर्थन ऐतिहासिक, रणनीतिक और आर्थिक कारकों के एक जटिल मिश्रण में निहित है, जो समय के साथ बढ़ता गया है.

सवाल -लदाख , अरुणाचल जैसे इलाकों को लेकर चीन का रुख हमेशा से क्यों साजिशी रहा है?
– चीन ने 50 के दशक में तिब्बत को लेकर फाइव फिंगर पॉलिसी बनाई थी, जो माओत्से तुंग की देन है. तिब्बत को चीन अपने दाहिने हाथ की हथेली मानता है, जिसमें पांच अंगुलियां हैं – लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश. लिहाजा वह इन सभी इलाकों पर नजर गड़ाए हुए है. उन पर अवैध कब्जा भी करता रहा है.