अपराजेय योद्धा बाजीराव बल्लाळ को अधिकांश लोग मस्तानी से जोड़कर देखते हैं, यह हिंदू जाति के शौर्य को दलित दमित करने का रोमिलाई कुटिलता थी। इतिहास लिखते समय मैकाले के मानसपुत्रों ने अशोक और अकबर से भारत की पहचान जोड़ी। ऐसा इसलिए कि एक तो टॉक्सिक नव बौद्धों के जरिए जोशुआई विमर्श से मिले अथाह पैसे के आधार पर वे पश्चिमी आकाओं को खुश कर रहे थे,
28 मार्च 1737 को मराठों की एक बड़ी सेना दिल्ली के उस जगह धमक पड़ी जहां आज तालकटोरा स्टेडियम है। शहंशा ए आलम रंगीले दिल्ली ते पालम हो गए, मीर हसन कोका की सेना मराठों द्वारा रौंद दी गई। मराठे अपने नायक के नेतृत्व में हिंदू पद पादशाही की सर्वोच्चता स्थापित कर पुणे लौट आए। वह नायक था पेशवा बाजीराव बल्लाळ ।
बाजीराव एक ऐसा नाम जो चुभता है मुगलई इतिहासकारों को, चुभता है हिंदुत्व के विरुद्ध चाल कुचाल करने वाले अकादमिक एजेंडाबाजों को, चुभता है टुकड़े गैंग को, चुभता है सनातन परम्परा के प्रति ईर्ष्यालुओं को।
अपराजेय योद्धा बाजीराव बल्लाळ को अधिकांश लोग मस्तानी से जोड़कर देखते हैं, यह हिंदू जाति के शौर्य को दलित दमित करने का रोमिलाई कुटिलता थी। इतिहास लिखते समय मैकाले के मानसपुत्रों ने अशोक और अकबर से भारत की पहचान जोड़ी। ऐसा इसलिए कि एक तो टॉक्सिक नव बौद्धों के जरिए जोशुआई विमर्श से मिले अथाह पैसे के आधार पर वे पश्चिमी आकाओं को खुश कर रहे थे, दूसरा अकबर के सहारे वे मध्यकालीन भारत के सभी पराक्रमी योद्धाओं को दोयम दर्जे का साबित करना चाह रहे थे। इस क्रम में महाराणा प्रताप और शिवाजी के चित्र को भी मुगलिया सेकुलरई रंग में रंग कर पाठ्यक्रम में प्रस्तुत किया गया।
महाकालेश्वर का पुनः निर्माण कर श्रीमंत बाजीराव ने काशी विश्वनाथ को भी म्लेच्छ से मुक्त कराने का संकल्प लिया था, ऐसा व्यक्ति लाल इतिहासकारों को भला क्यों सुहाएगा।
हिंदू पद पादशाही का विकट योद्धा बाजीराव इन्हे सूट नहीं करता था पर ज्यादा दुःख की बात है कि आज भी बाजीराव हमारी पाठयपुस्तकों से गायब है, हमारी चर्चाओं से गायब है, हमारी सोशल मीडिया के वाल से गायब है। बाजीराव की जयंती पर किसी बड़े नेता, सामाजिक विचारक का ट्वीट बहुत मुश्किल से मिलेगा।
सिकंदर को महान बना दिया गया पर वह योद्धा जो अपने बयालीस युद्धों में कभी नही हारा हो उसके नाम एक पैरा देकर भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने इति श्री कर लेता है।
हम अपने नायकों के प्रति कृतघ्न रहे हैं। मेरा आग्रह है कि यह रवायत, यह आदत और जाति में बांट कर विमर्श करने की परंपरा खत्म हो।
हिंदू पद पादशाही के ध्वजवाहक श्रीमन्त पेशवा बाजीराव बल्लाळ की पुण्यतिथि आने वाली है। मेरा आग्रह है कि इस अजेय योद्धा के नाम पर प्रत्येक ग्राम के किसी हिंदू परिवार के एक संतान का नामकरण अवश्य हो।
(लेखिका यूपी जागरण डॉट कॉम (A Largest Web News Channel Of Incredible BHARAT)की विशेष संवाददाता हैं )