अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 5 नवंबर को होने वाले हैं। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अमेरिकी चुनाव के नतीजे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कई मुद्दे उठा सकते हैं, जिनमें संरक्षणवादी उपायों में वृद्धि से लेकर घरेलू वृद्धि एवं रोजगार पर असर तक शामिल हैं। इस मुद्दों का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि आखिर जीत किसकी होती है। इस बीच भारत को अमेरिका के चीन विरोधी रुख से फायदा होने की उम्मीद है। चुनाव का नतीजा कुछ भी हो, लेकिन इससे भारत के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका अपने विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सख्त संरक्षणवादी नीतियों की ओर रुख करता है तो भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि भारत की घरेलू बुनियादी बातें स्थिर हैं, लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि डॉनल्ड ट्रंप की जीत से कुछ चिंताएं पैदा हो सकती हैं।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘अमेरिका के लिए ट्रंप की प्राथमिकता और आयात पर कराधान एक मुद्दा हो सकता है। दूसरा, फेडरल रिजर्व पर दबाव डालने की उनकी क्षमता भी एक मुद्दा होगा जो बॉन्ड बाजार को प्रभावित कर सकता है। तीसरा, अधिक घाटे को प्राथमिकता दिए जाने से मुद्रास्फीति में तेजी आएगी और बॉन्ड यील्ड प्रभावित होगी। चौथा, डॉलर की मजबूती को बरकरार रखना भी एक मुद्दा है जिससे रुपये पर दबाव बढ़ सकता है।’
डेमोक्रेटिक पार्टी के सत्ता में वापसी का मतलब नीतियों में निरंतरता होगा। राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप सभी तरह के आयात पर 10 से 20 फीसदी तक शुल्क लगाने के साथ-साथ कड़े व्यापार प्रतिबंध भी लगा सकते हैं। इससे अमेरिका में भारत की कीमत संबंधी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होगी।
काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के जानेमाने प्रोफेसर विश्वजित धर ने कहा, ‘दोनों राष्ट्रपतियों की तुलना करने पर मुझे लगता है कि ट्रंप का कार्यकाल अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उनका आव्रजन विरोधी रुख भारतीय आईटीईएस कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकता है। अगर वह इस बात पर जोर देते हैं कि अमेरिकी कंपनियां अपनी पूंजी वापस लाएं, तो भारत में विदेशी पूंजी प्रवाह प्रभावित हो सकता है। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने ऐसा किया था।’
विशेषज्ञों ने कहा कि चुनाव नतीजा जो भी हो अमेरिका चीन से आयात पर अधिक शुल्क दरों को बरकरार रखेगा। इसके अलावा सब्सिडी जारी रखने और विश्व व्यापार संगठन की भूमिका को सीमित करने जैसी नीतियों को बरकरार रखेगा।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘ट्रंप भारत को पहले ही शुल्क दरों का बड़ा दुरुपयोगकर्ता करार दे चुका है। उच्च शुल्क दरों और आयात प्रतिबंधों से अमेरिका को अधिक लाभ नहीं होगा क्योंकि अधिक मजदूरी एवं उत्पादन लागत से घरेलू प्रतिस्पर्धा खत्म होने के साथ-साथ अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ सकता है।’
दूसरी ओर, हैरिस की जीत से मौजूदा व्यापार डायनेमिक्स के बरकरार रहने की उम्मीद है। राइट रिसर्च के अनुसार, मौजूदा नीतियों से भारतीय निर्यात को फलने-फूलने में मदद मिली है। उन्होंने कहा, ‘नीतियों में निरंतरता बरकरार रहने से भारत के निर्यात क्षेत्र को मदद मिलेगी। बाइडन की अपेक्षाकृत स्थिर व्यापार नीतियों के कारण भारतीय निर्यात को बढ़ावा मिला है।’
एशिया डिकोडेड के एक विश्लेषण में कहा गया है कि कंपनियों को स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा देने पर ट्रंप का ध्यान चीन से स्वतंत्र आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने के लिए अन्य सहयोगियों के साथ तालमेल को कमजोर कर सकता है।
अमेरिका को होने वाले भारत के प्रमुख निर्यात में रत्न एवं आभूषण और वस्त्र जैसे श्रम की अधिकता वाले क्षेत्र शामिल हैं। फिलिप कैपिटल के एक विश्लेषण में कहा गया है कि हैरिस का नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर के विपरीत जीवाश्म ईंधन पर ट्रंप का ध्यान कच्चे तेल की कीमतों को कम कर सकता है। इससे भारतीय रिफाइनरों और उपभोक्ताओं को फायदा होगा।