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जब प्रभु के चरण को जनक ने धोया तो देवता भी चकित हो गए

घुघली। जिसका चरण स्पर्श कर गौतम मुनि की स्त्री अहिल्या ने परमगती पाईं। जिन चरन कमलों का मकरंद रस शिव जी के मस्तक पर विराजमान है। जिसको देवता पवित्रता का का सीमा बताते हैं। मुनि और योगी जन अपने मन को भौरा बनाकर जिन चरन कमलों का सेवन करके मनोवांछित गति प्राप्त करते हैं। उन्हीं चरणों को भाग्य के पात्र जनक जी धो रहे थे। यह देखकर जयकार कर रहे थे।

उक्त बातें हरखा प्यास में आयोजित नौ दिवसीय श्री राम कथा के पांचवें दिन कथा वाचक राजन महराज ने कही। उन्होंने कहा कि सब पुत्रों व बहूओं के साथ देखकर अवध नरेश दशरथ आनंदित थे। मानो कि वे राजाओं के शिरोमणि क्रिया, जग, श्रद्धा और ज्ञान क्रिया सहित चारों फल पाने वाले हे जनक जी भाई सहित हाथ जोड़कर सुंदर प्रेम मानकर मनोहर वचनों के हे राजन आपसे संबंध हो जाने से हम सब इस प्रकार बड़े हो गए हैं कि इस राजपाठ सहित हम दोनों को आप बिना दाम के सेवक हो गए है।

उन्होंने कहा कि मारने वाला जिस तरह अमृत पर जाय, जन्म का भूखा कल्पवृक्ष पर जाय और नरक में रहने वाला जीव जैसे भगवान को परम पद के प्राप्त हो जाय हमारे लिए इनके दर्शन बस ही है। कथा वाचक राजन महराज ने कहा कि जनकपुरी में राम सहित चारों भाइयों की शादी से देवर्षि नारद, बामदेव, बाल्मिकी सहित गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र सहित सभी खुशी खुशी झूम उठे। भगवान शंकर भी रघुनाथ की शादी बड़े ध्यान से देख रहे थे

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