नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का सफर 90 साल से ज्यादा का हो चुका है।इस सफर के दौरान संघ ने कई उतार-चढ़ाव देखे।एक दौर वो भी था जब सरकार को संघ पर प्रतिबंध लगाना पड़ा था।संघ पर एक बार नहीं बल्कि तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है,लेकिन इसके बावजूद संघ का कारवां आगे बढ़ता रहा।संघ संवाद के जरिए लोगों से जुड़ता रहा।आज यही वजह है कि देश की राजनीति में संघ का बड़ा दखल माना जाता है।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी करते हुए सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है।इसके लिए केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकारों द्वारा जारी उन आदेशों में संशोधन किया है,जिनमें सरकारी कर्मचारियों के संघ की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाई गई थी।संघ ने मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है।इस फैसले को लेकर विपक्ष हमलावर हो चुका है।
क्या है संघ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) विश्व का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन माना जाता है।इसके स्वयंसेवक देशभर में सक्रिय हैं।संघ को कई लोग भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक संरक्षक भी मानते हैं,जो कि इस समय दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों में से एक है।भाजपा वर्तमान में लगातार एनडीए के सहयोगी दलों के साथ तीसरी बार सरकार बना चुकी है।मौजूदा समय में भी देश के कई राज्यों में भाजपा की सरकार है।भाजपा देश की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।भाजपा के अधिकतर बड़े नेता संघ से जुड़े हुए हैं,जिसमें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं,जिन्होंने संघ में लंबे समय तक कार्य किया है।
जानें कब हुई थी संघ की स्थापना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना केशव बलराम हेडगेवार ने की थी।संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन हुई थी।हर साल संघ विजयादशमी पर अपना स्थापना दिवस मनाता है।संघ की स्थापना डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने एक छोटे समूह के साथ की थी।संघ की कार्यशैली का मूल आधार दैनिक शाखा को माना जाता है।जहां अनुशान का बड़ा महत्व है।
शाखा में तय समय और स्थान पर लोग एकत्र होते हैं जहां शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास से संबंधित गतिविधियों व कार्यक्रमों का आयोजन होता है।द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक पहली ऐसी दैनिक शाखा 28 मई 1926 से शुरू हुई,जिसका एक नियमित कार्यक्रम था,जिस स्थान पर संघ पहली शाखा आरंभ हुई थी वह नागपुर का मोहितेबाड़ा मैदान था,जो कि मौजूदा में संघ का मुख्यालय परिसर का हिस्सा है।वर्तमान में संघ की 60,000 से अधिक दैनिक शाखाएं हैं।
संघ पर तीन बार लगा बैन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है।आजादी मिले एक साल भी नहीं हुआ था कि संघ को प्रतिंबध का सामना करना पड़ा।सबसे पहले 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।इसके पीछे की वजह ये है कि महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया। 18 महीने तक संघ पर प्रतिबंध लगा रहा।ये प्रतिबंध 11 जुलाई 1949 को तब हटा जब देश के उस समय के गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की शर्तें तत्कालीन संघ प्रमुख माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने मान लीं,लेकिन ये प्रतिबंध इन शर्तों के साथ हटा कि संघ अपना संविधान बनाए और उसे प्रकाशित करे,जिसमें चुनाव की खास अहमियत होगी और लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव होगा।इसके साथ ही संघ की देश की राजनीतिक गतिविधियों से पूरी तरह से दूरी बनाकर रखेगा।
संघ पर दूसरी बार क्यों लगा बैन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को दूसरी बार प्रतिबंध का समाना इमरजेंसी के दौर में करना पड़ा।इंदिरा गांधी ने साल 1975 जब देश में इमरजेंसी लगाई तो संघ ने इसका जमकर विरोध किया था।जोरदार विरोध के चलते बड़ी संख्या में संघ के लोगों को जेल जाना पड़ा।इस दौरान संघ पर दो साल तक पाबंदी लगी रही।इमरजेंसी के बाद जब चुनाव की घोषणा हुई तो जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। इसके बाद साल 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई तब जाकर संघ पर लगा प्रतिबंध हटाया गया।
संघ पर तीसरी बार बैन लगने की वजह
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर तीसरी बार प्रतिबंध साल 1992 में लगा। दरअसल पहली बार भाजपा ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा।इस चुनाव में भाजपा दो सीटों पर सिमट गई, लेकिन बाबरी मस्जिद ने राजनीतिक परिदृश्य बिल्कुल पूरी तरह बदल दिया। 1986 में अयोध्या के विवादित परिसर का ताला खोल दिया गया और वहां से मंदिर-मस्जिद की राजनीति गर्मा गई।इसी मौके को भाजपा और संघ ने भुना लिया।नतीजतन इसको लेकर 1986 से 1992 के बीच खूब टकराव हुआ।
जगह-जगह हिंसा हुई,लोगों की जानें गई।साल 1992 में अयोध्या में भीड़ ने विवादित ढांचे का गुंबद गिरा दिया।इससे देश के कई हिस्सो में तनाव फैल गया,हिंसा होने लगी और माहौल खराब होने लगा।देश की स्थिति देख तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने संघ पर भी प्रतिबंध लगा दिया।इसके बाद एक बार फिर जांच चली,लेकिन जांच में संघ के खिलाफ कुछ नहीं मिला।नतीजतन आखिर में तीसरी बार भी 4 जून 1993 को सरकार को संघ पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा।
क्या है वो आदेश जिसमें सरकारी कर्मचारियों पर लगा बैन
केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकारों द्वारा जारी उन आदेशों में संशोधन किया गया है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों के संघ की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों से दूर रखने के लिए रोक लगाई थी।आरोप है कि पूर्व सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी।संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर कर्मचारियों को सजा देने तक का प्रावधान भी लागू किया गया।सरकारी सेवाओं से जुड़े लाभ लेने के लिए कर्मचारी संघ की गतिविधियों से दूर रहते थे।
संघ ने किया फैसले का स्वागत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने सरकारी कर्मचारियों के संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगी रोक हटाने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया है।संघ ने कहा कि फैसले से देश की लोकतांत्रिक प्रणाली मजबूत होगी।पूर्ववर्ती सरकारों पर अपने राजनीतिक हितों के कारण सरकारी कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित करने का आरोप भी लगाया।प्रतिबंध हटाने संबंधी सरकारी आदेश के सार्वजनिक होने के एक दिन बाद संघ प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने एक बयान में कहा कि सरकार का ताजा फैसला उचित है और यह भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करेगा।
विपक्ष ने सरकार के फैसले की आलोचना की
विपक्ष के कई नेताओं ने सरकारी कर्मचारियों पर संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर लगा प्रतिबंध हटाने के केंद्र के फैसले की आलोचना की है।कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक ऑफिस मेमोरेंडम का हवाला देते हुए एक्स पर कहा कि फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था,जिसे अच्छे आचरण के आश्वासन पर हटाया गया।
फिर भी संघ ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया।साल 1966 में आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था।यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है। 9 जुलाई 2024 को 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था।
प्रतिबंध हटाने का निर्णय देशहित से परे:मायावती
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने सरकारी कर्मचारियों के संघ की शाखाओं में जाने पर 58 वर्ष से जारी प्रतिबंध को हटाने का केन्द्र का निर्णय देशहित से परे बताया है।मायावती ने एक्स पर लिखा कि सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखाओं में जाने पर 58 वर्ष से जारी प्रतिबंध को हटाने का केन्द्र का निर्णय देशहित से परे,राजनीति से प्रेरित संघ तुष्टीकरण का निर्णय है ताकि सरकारी नीतियों व इनके अहंकारी रवैयों आदि को लेकर लोकसभा चुनाव के बाद दोनों के बीच तीव्र हुई तल्खी दूर हो।
मायावती ने आगे लिखा कि सरकारी कर्मचारियों को संविधान व कानून के दायरे में रहकर निष्पक्षता के साथ जनहित व जनकल्याण में कार्य करना जरूरी होता है जबकि कई बार प्रतिबन्धित रहे आरएसएस की गतिविधियां काफी राजनीतिक ही नहीं बल्कि पार्टी विशेष के लिए चुनावी भी रही हैं।ऐसे में यह निर्णय अनुचित है,तुरन्त वापस हो।
बता दें कि कि अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारी भी भाग ले सकेंगे।केंद्र सरकार ने 58 साल पुराने प्रतिबंध को हटा लिया है।