भारत छोड़ो आंदोलन संपूर्ण देश का आंदोलन बना. अनेक जातियां, समुदाय, क्षेत्रों के लोग इसमें शामिल थे. दलित समूह जिनकी जनसंख्या इस देश में 15 प्रतिशत के आस-पास है, की भी भारत छोड़ो आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है.किन्तु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास लेखन में उन्हें महत्वपूर्ण जगह मिलना अभी बाक़ी है.

बाबू गंगाराम धानुक ने जुलूस निकाले, नारे लगाए, जेल गए, अंग्रेज़ी सरकार के ज़ोर-जुल्म से जमकर लोहा लिया. वो 1923 में गांधी जी के हरिजन उत्थान आंदोलन से प्रभावित हुए और दलित उत्थान और जागृति लाने का संकल्प लिया.
1932 में वे बाबा साहब से मिले. उनसे जुड़कर इटावा, फ़र्रुख़ाबाद और उत्तर प्रदेश के अन्य भागों में आंबेडकर चेतना का आंदोलन चलाए. फिर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के नायक बन गए. उत्तर प्रदेश से चलकर बाद में बिहार को भी अपना कर्मस्थली बनाया.
महात्मा गांधी, नेहरू, राजेंद्र प्रसाद के साथ भारत के अलग-अलग प्रान्तों में दलित कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रहे थे.
इनमें बिहार के गंगा राम धानुक, भोला पासवान, जगलाल चौधरी, उत्तर प्रदेश के धर्म प्रकाश, राम जी लाल सहायक, जौनपुर उत्तर प्रदेश के माता प्रसाद, खुदागंज के प्रेम चन्द आर्य, राजस्थान के गोबिन्द गुरु, आन्ध्र प्रदेश के एम. आर. कृष्णा, एस. नागप्पा, मध्य प्रदेश के भगवती चन्द्राकर, के जूलुस चन्द्राकर जैसे दलित समूह के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
बिहार से उभरे बाबू जगजीवन राम, गंगाराम धानुक के ही राजनीतिक शिष्य माने गए हैं. दलित समूह के ये क्रान्तिकारी देश के लिए अंग्रेजों से लड़े, साथ ही इनमें से कइयों ने समाज के दलित मुक्ति की लड़ाई का भी नेतृत्व किया.
बाबू गंगाराम धानुक ने ताउम्र दलित मुक्ति की लड़ाई लड़ी. ये सब कांग्रेस के बैनर तले आज़ादी की लड़ाई से जुड़े, साथ ही अनेक छोटे-छोटे उप संगठन बनाकर दलित मुक्ति की लड़ाई भी लड़ते रहे. इन सबके लिए देश की मुक्ति और दलित मुक्ति एक दूसरे से गहराई से जुड़े थे.
1941 के भारत छोड़ो आंदोलन के नायक श्री भोला पासवान ने आज़ादी के बाद अछूतों के बीच जागरूकता लाने के लिए अनेक आंदोलन चलाए.
उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्मे धर्म प्रकाश ने आर्य समाज के बैनर तले दलितों में आत्म सम्मान जागृत करने का अभियान चलाया था, साथ ही भारत छोड़ो आंदोलन के महत्वपूर्ण जननायक बनकर उभरे.
उत्तर प्रदेश के मेरठ के रामजी लाल सहायक ने 1942 के आंदोलन में दलित नवयुवकों को बड़ी संख्या में गोलबंद किया था. आज़ादी मिलने के बाद इन्होंने अपने को पूर्ण रूप से समाज सेवा में लगा दिया. 1966 में वे उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री भी बने.
1942 के आंदोलन के ये दलित जननायक गांव-गांव और कस्बे-कस्बे में मिल जाएंगे, ज़रूरत है इन पर शोध कर इन्हें सामने लाने की. इन दलित जन नायकों में ज़्यादातर कांग्रेसी थे. लेकिन इनके लिए आज़ादी की लड़ाई सिर्फ़ अंग्रेजों से देश की मुक्ति की लड़ाई नहीं थी, किन्तु अछूतपन से मुक्ति और दलित मुक्ति की लड़ाई से भी जुड़ी थी.
इसीलिए उनमें से ज़्यादातर स्वतंत्रता सेनानी के साथ साथ दलित समाज के समाज सुधारक भी बन कर उभरे. इनमें से कई आज़ादी के बाद बनी राज्य सरकारों में मंत्री तक बने, लेकिन इनमें से कई आज भी अनाम हैं. आज जब इस ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को याद कर रहे हैं तो हमें उन्हें भी याद करने की ज़रूरत है.