केराकत (जौनपुर)। सरकारी धन के अपव्यय का इससे बड़ा उदाहरण भला क्या होगा। जिन पुलों को वर्ष 2014 तक ही पूरा हो जाना था, वह छह साल बाद भी अधूरा है। कार्यदाई संस्था की लेटलतीफी के चलते पुलों की लागत बढ़कर दोगुना हो गई। फिर भी काम की सुस्ती जारी है। निर्माण में देरी से सरकारी राजस्व को तो चपत लगी ही है, ग्रामीणों का भी लंबी दूरी कम होने का सपना अधर में है।

बसपा सरकार ने वर्ष 2011 में गोमती नदी पर पसेवां-मई घाट और बीरमपुर-भड़ेहरी घाट के बीच पुल निर्माण की मंजूरी दी थी। पसेवां-मई घाट पुल के लिए 6 करोड़ 22 लाख रुपये खर्च होना प्रस्तावित था, जबकि बीरमपुर-भड़ेहरी पुल की लागत 7.25 करोड़ रखी गई थी। तीन-तीन करोड़ की पहली किश्त अवमुक्त होने के साथ काम तेजी से शुरू हुआ। तत्कालीन पीडब्लूडी मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने 25 नवंबर 2011 को शिलान्यास किया।
सरकार का सख्त निर्देश भी था कि इसे 2014 तक पूरा लिया जाए, लिहाजा कार्यदाई संस्था सेतु निगम ने भी तेजी दिखाई। वर्ष 2012 में सत्ता परिवर्तन के बाद से इस पर ग्रहण लग गया, जो आज तक नहीं छंट सका है। बीरमपुर घाट पर 9 पावों में 4 ही बन सका है।
वहीं पसेवां-मई घाट पर सभी आठ पावे बनकर तैयार हैं, लेकिन छत व बैकवाल का काम शेष है। लंबे समय से काम रुका रहने के कारण महंगाई का हवाला देते हुए कार्यदाई संस्था ने दोबारा एस्टीमेट तैयार कर भेजा। अब लागत दोगुना हो गई है। बीरमपुर-भड़ेहरी घाट पुल के 13.30 करोड़ और पसेवां-मई घाट पुल के लिए 12 करोड़ रुपये के नए एस्टीमेट को मंजूरी मिली है।
बोले जिम्मेदार: मजदूरों की कमी से रुका है काम
सेतु निगम जौनपुर इकाई के एक्सईएन जय प्रकाश गुप्त ने बताया कि रिवाइज एस्टीमेट को मंजूरी मिलने के बाद पसेवां-मई घाट पर काम शुरू करा दिया गया है। शीघ्र ही इसे पूरा करने का प्रयास है। बीरमपुर-भड़ेहरी घाट पर कार्य शुरू नहीं हो पाया है। सहायक अभियंता सुरेंद्र सिंह ने बताया कि स्टाफ की भारी कमी है। इसके चलते निर्माण कार्य परवान नहीं चढ़ पा रहा।