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देवताओं के गुरु बृहस्पति की कैसे हुई उत्पत्ति? जानें……

क्या बहुत अधिक प्रयास करने पर भी आपको वो परिणाम नहीं मिल पाता, जिसके आप हकदार हैं? या फिर आप जिस भी काम को करने जाते हैं, वहां बाधा उत्पन्न हो जाती है? अगर आपके जीवन में भी कुछ ऐसी ही स्थितियां उत्पन्न होती रहती हैं, तो हो सकता है कि आपका गुरु या बृहस्पति कमजोर हो। अगर किसी का गुरु कमजोर होता है, तो उस व्यक्ति को भाग्य का साथ नहीं मिल पाता और जीवन में हमेशा बाधा ही उत्पन्न होती रहती है। ज्योतिष शास्त्र में गुरु को शांत करने के कई उपाय बताए गए हैं। आपने भी कभी न कभी ये उपाय जरूर किए होंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि सौभाग्य को बढ़ाने वाले देवताओं के गुरु बृहस्पति की उत्त्पति कैसे हुई थी? आइए, जानते हैं पौराणिक कहानी-

ब्रह्म देव के आशीर्वाद से जन्मे हैं देवगुरु बृहस्पति

ऋग्वेद के अनुसार प्राचीन काल में महर्षि अंगिरा नाम के एक महान ऋषि हुआ करते थे। अपने तपोबल से इन्होंने कई सिद्धियां प्राप्त की थी। महर्षि अंगिरा के ज्ञान की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थी लेकिन इतना ज्ञान और तपोबल होने के बाद महर्षि अंगिरा बहुत ही चिंतित रहते थे क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। इस कारण से उनकी पत्नी स्मृति भी बहुत विचलित रहती थी। कोई मार्ग ना सूझते देखकर महर्षि अंगिरा की पत्नी ने ब्रह्म देव की अखंड तपस्या की।

इतनी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्म देव ने महर्षि अंगिरा और उनकी पत्नी को दर्शन देकर पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। ब्रह्म देव ने दोनों दम्पति को पुत्र प्राप्ति के लिए एक कठिन व्रत बताया। ब्रह्म देव ने कहा कि अगर वो पूरी आस्था और नियमों के साथ पुंसवन व्रत का संकल्प लेते हैं, तो उन्हें एक ओजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी। महर्षि अंगिरा और उनकी पत्नी ने ऐसा ही किया और कुछ समय बाद दोनों को एक ओजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। महर्षि अंगिरा के पुत्र होने के कारण इस बालक का नाम अंगिरानंदन रखा गया। जो बाद में जाकर बृहस्पति नाम से प्रसिद्ध हुए।

कैसे बने बृहस्पति देवताओं के गुरु

    अपने पिता की तरह ही अंगिरानंदन भी बहुत ही ज्ञानी थे। वे भगवान शिव के भक्त थे। उन्होंने एक शिवलिंग निर्मित किया और इस शिवलिंग की घोर तपस्या की। इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अंगिरानंदन को दर्शन दिए। भगवान शिब ने अंगिरानंदन से कहा- “पुत्र! तुमने मेरा बहुत ही बृहत तप किया है, इसलिए तुम अब से बृहस्पति के नाम से जाने जाओगे। तुम धर्म और नीति के महान ज्ञाता हो, इसलिए अपने ज्ञान से देवताओं का मार्गदर्शन करो। इस प्रकार देवों के देव महादेव ने बृहस्पति को देवगुरु की उपाधि दी और नवग्रह मंडल में स्थान भी दिया।
(मंजू लता शुक्ला यूपी जागरण डॉट कॉम(A Largest Web News Channel Of Incredible BHARAT)की विशेष संवाददाता एवं धार्मिक मामलो की जानकार हैं )
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