पूजनीय डॉ. हेडगेवार जी की जीवनी ‘मैन ऑफ द मिलेनिया: डॉ. हेडगेवार’ को अंग्रेजी में प्रकाशित करने के लिए सुरुचि प्रकाशन, दिल्ली, और जीवनी का अंग्रेजी भाषांतर करने वाले स्व. अनिल नैने जी हम सब की ओर से अभिनंदन के पात्र हैं। सुरुचि प्रकाशन और अनिल नैने के बारे में यहाँ संक्षेप में बताया गया है।
कार्यक्रम संपन्न होने के बाद जब सभी को लगा कि अनिल जी नहीं दिख रहे हैं तो उनके कक्ष में जाकर देखा। तब तक परिस्थिति अपने नियंत्रण से बाहर हो गई थी। वह इस लोक से हमेशा के लिए चले गए। इसलिए आज का पुस्तक लोकार्पण एक दृष्टि से स्वर्गीय अनिल नैने जी की स्मृति में श्रद्धांजलि भी है। वह इस कार्यक्रम में स्वयं उपस्थित रहते तो आनंद ज्यादा होता। भाभी जी यहां आई हैं। मैं सबकी ओर से अनिल नैने जी को श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं। उन्होंने अपने जीवन में एक श्रेष्ठ कार्य किया।
नाना पालकर जी की लेखनी से जब डॉ. साहब की अधिकृत जीवनी 50 के दशक में प्रकाशित हुई तब डॉक्टर जी के स्वर्गवास को 10-12 साल हो गए थे। उनके देहांत के पश्चात एक छोटी सी पुस्तिका ‘क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे’ शीर्षक से छपी थी। नाना पालकर ने डॉक्टर जी के बारे में काफी शोध करके, उनके साथ कार्य करने वाले लोगों से मिलकर, उनके पत्रों के आधार पर तथा उस समय के समाचार पत्रों से मिले तथ्यों के आधार पर ‘डॉ. हेडगेवार चरित्र’ शीर्षक से एक अधिकृत जीवनी मराठी में प्रकाशित की। विगत दशकों में भारत की प्राय: हर भाषा में उसका अनुवाद हुआ है। अंग्रेजी में कुछ लोगों ने एक-दो बार प्रयत्न किए, परंतु किसी न किसी कारण से वह कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। अब अनिल नैने जी ने प्रयास किया और यह पुस्तक आज अंग्रेजी में आप सबके समक्ष प्रस्तुत है।
तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें
अंग्रेजी में प्रकाशित दो पुस्तकों का मैं यहाँ विशेष रूप से उल्लेख करूंगा। एक है माननीय एच.वी. शेषाद्री जी द्वारा लिखित ‘डॉ हेडगेवार: द अपोक मेकर’। शेषाद्री जी संघ के सरकार्यवाह रहे, जीवनभर प्रचारक रहे। वह सिद्धहस्त लेखक थे। लेकिन ‘डॉ हेडगेवार: द अपोक मेकर’ डॉक्टर साहब की पूर्ण जीवनी नहीं थी। फिर भी एक दृष्टि से अंग्रेजी में वह अधिकृत ग्रंथ के नाते उपलब्ध है। दूसरी पुस्तक है डॉ. राकेश सिन्हा द्वारा लिखित पुस्तक।
इस पुस्तक में कुछ ऐसी जानकारी भी है जो संभवत: नाना पालकर को उस समय किसी कारणवश उपलब्ध नहीं हो पायी होगी। वह अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओँ में है। और भी कई भाषाओं में उसका अनुवाद हुआ है। इसलिए ऐसा मानना चाहिए कि नाना पालकर जी की अंग्रेजी पुस्तक, जिसका आज लोकार्पण हुआ है, मा. शेषाद्री जी की पुस्तक और राकेश सिन्हा की पुस्तक, इन तीनों को मिलाकर डॉ. हेडगेवार की जीवनी पूर्ण हो जाती है। ये तीनों पुस्तकें आप पढ़िए।
वैसे आज मेरा भाषण यहां बहुत प्रासंगिक नहीं है। इसका कारण यह है कि मैं संघ का कार्यकर्त्ता हूँ और सालभर संघ के बारे में बोलता रहता हूं। इसलिए मुझे आज मुख्य भाषण नहीं करना है। अभी एशियानेट न्यूज के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश कालरा जी ने संघ के बारे में अपने अनुभव के आधार पर कुछ बातें बताई। हम संघ के लोग इतने शुष्क हैं कि हम धन्यवाद भी नहीं देते। हमको लगता है कि अच्छी बात है आपने संघ को नजदीक से इतना समझ लिया। हम कई बार कहते भी हैं कि संघ को दूर से समझने का प्रयत्न मत करो। संघ में आओ, देखो, संघ के लोगों को नजदीक से देखो, संघ में आकर देखो। आपको ठीक लगे तो काम करते रहिये, ठीक नहीं लगे तो चले जाइए। संघ को समझने के लिए दिमाग के साथ दिल भी चाहिए। क्योंकि संघ उस प्रकार के व्यक्ति के कारण बना है।
जन्मजात देशभक्त
डॉक्टर हेडगेवार का पूरा नाम केशवराव था। बलिराम पंत उनके पिताजी का नाम था। नागपुर में जब उनका जन्म हुआ तब देश में अंग्रेजों का शासन था। नागपुर उस समय एक ऐसा केंद्र था, जहां देश की मुक्ति के लिए स्वतंत्रता संग्राम की कई प्रकार की धाराओं के लोग उपलब्ध थे। उन सबके कारण जो वातावरण बना था उस वातावरण में डॉक्टर साहब का जन्म हुआ। इसलिए डॉक्टर जी जन्मजात देशभक्त थे। उनके व्यक्तित्व के संदर्भ में यदि विचार करें तो उनकी देशभक्ति किसी प्रतिक्रिया के कारण नहीं थी। यहाँ अंग्रेज राज चला रहे हैं, इसलिए देशभक्ति है, ऐसा नहीं था।
उनकी देशभक्ति ऐसी थी कि इस राष्ट्र में हमने जन्म लिया है तो यह हमारा ऋण है, हमारा कर्तव्य है। वे एक जन्मजात देशभक्त, समझौता न करने वाले देशभक्त और सक्रिय देशभक्त थे। इसलिए उनकी वाणी में देशभक्ति धधकती थी। उनके संपर्क में आए लोग देशभक्ति की उस स्फूर्ति और प्रेरणा को लेकर ही जाते थे। ऐसे कई उदाहरण हैं। डॉक्टर साहब की पूरी जीवनी तो मैं यहां नहीं बताऊंगा। इस पुस्तक के संदर्भ में कुछ बातें अवश्य आपके सम्मुख रखने का प्रयास करूँगा।