हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देने से किया इनकार, साइबर अपराधों में वृद्धि को ध्यान रखते हुए लिया फैसला.
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देशभर में साइबर अपराधों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए इस मामले के आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि हमारे देश में साइबर अपराध साइलेंट वायरस की तरह है. इसने असंख्य निर्दोष पीड़ितों को प्रभावित किया है, जो अपनी मेहनत की कमाई से ठगे गए हैं.
कोर्ट ने कहा कि साइबर अपराध पूरे देश के लोगों को प्रभावित कर रहा है, चाहे उनका धर्म, क्षेत्र, शिक्षा या वर्ग कुछ भी हो. ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए.
यह आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने निशांत रॉय को जमानत देने से इनकार करते हुए दिया है. कोर्ट ने कहा कि डिजिटल इंडिया जैसी पहल ने देश के डिजिटल परिवर्तन को गति दी है, लेकिन इसने उन कमजोरियों को भी उजागर किया है. जिनका साइबर अपराधी फायदा उठाते हैं. इस न्यायालय का मानना है कि भारत में प्रौद्योगिकी की तीव्र प्रगति और डिजिटल बुनियादी ढांचे को व्यापक रूप से अपनाने से फिशिंग घोटाले, साइबर स्टॉकिंग और डेटा उल्लंघन सहित साइबर अपराधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.
याची के खिलाफ आईपीसी की धारा 384, 406, 419, 420, 506, 507 व 34 और आईटी अधिनियम की धारा 66 सी व 66 डी के तहत प्रयागराज के साइबर क्राइम थाने में मुकदमा दर्ज है. इस मामले में पीड़िता को एक कूरियर कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर किसी व्यक्ति से कॉल आया. जिसमें दावा किया गया कि उसके नाम से एक पार्सल ताइवान भेजा जा रहा है और इसमें 200 ग्राम एमडीएमए सहित अवैध सामग्री है.
बाद में यह कॉल एक ऐसे व्यक्ति को स्थानांतरित कर दी गई, जिसने खुद को अपराध शाखा का पुलिस उपायुक्त बताया. उस पीड़िता को डिजिटल अरेस्ट कर लिया और उसके बाद जांच के लिए उससे अपने बैंक खाते का विवरण साझा करने के लिए दबाव डाला. इसके बाद तीन दिनों में साइबर अपराधियों ने आरटीजीएस के माध्यम से पीड़िता के दो खातों से कुल 1.48 करोड़ की राशि धोखाधड़ी से स्थानांतरित करा ली.
याची की ओर से कहा गया कि वह बीबीए का छठा सेमेस्टर का छात्र है. जांच के दौरान उसे झूठा फंसाया गया है, क्योंकि आरोपी रामा उर्फ चेतन ने अपने इकबालिया बयान में उसके पिता का नाम लिया था. तर्क दिया गया कि तीन मोबाइल, दो पूर्व-सक्रिय सिम कार्ड और एक चेकबुक की बरामदगी जांच अधिकारी द्वारा गढ़ी गई थी.
उसके वकील ने कहा कि याची के खाते में कोई लेनदेन नहीं हुआ. यह भी कहा गया कि इन अपराधों की सुनवाई मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है तथा इनमें अधिकतम सात वर्ष की सजा का प्रावधान है. साथ ही केवल सहअभियुक्त के बयान के आधार पर मामले में नहीं फंसाया जा सकता. कहा गया याची सात मई 2024 से जेल में है.
मामले में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है, लेकिन उसके खिलाफ आरोप अभी तक तय नहीं किए गए हैं. साथ ही हिरासत में पूछताछ अब आवश्यक नहीं है. इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए.
दूसरी ओर सरकारी वकील ने इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता वरिष्ठ नागरिक है. उसके बैंक खाते से निकाली गई 1.48 करोड़ रुपये की राशि में से 62 लाख रुपये संधू एंटरप्राइजेज के खाते में स्थानांतरित कर दिए गए थे. जिसे सहअभियुक्त अमर पाल सिंह और उसकी पत्नी संचालित करती है.
यह भी कहा किया गया कि याची से बरामद सिम संधू एंटरप्राइजेज के बैंक खाते से जुड़ा हुआ था. इस कारण उसे इस मामले में फंसाया गया. सहअभियुक्त अमर पाल सिंह, करण प्रीत, अमर पाल सिंह की पत्नी, देवेंद्र कुमार उर्फ देव रॉय फरार हैं और उनके खिलाफ जांच चल रही है. कोर्ट ने यह देखते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि याची के खिलाफ अब तक आरोप तय नहीं किए गए हैं. सहअभियुक्तों के खिलाफ जांच चल रही है.