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परिवार में बढ़ रहे मतभेद और कलह कैसे दूर करें,बता रहे है ज्योतिषाचार्य एवं कर्मकांड विशेषज्ञ पं.वेद प्रकाश शुक्ल

ज्योतिषाचार्य एवं कर्मकांड विशेषज्ञ पं.वेद प्रकाश शुक्ल

शनिदेव यदि कुंडली के तृतीय, षष्ठ और एकादश भाव में आसीन हों, तो अपनी दशा में हानि नहीं, लाभ का कारक बनते हैं। ऐसे में, शनि से संबंधित कर्म अपार धन, संपत्ति व सफलता का कारक बनते हैं। तेल, चमड़े, लोहे, स्टील, मशीनरी, सर्विसिंग, कोयले, खनिज क्षेत्र में बड़ी सफ़लता देते हैं।

इसे आजमाएं
यदि परिवार में मतभेद और कलह बढ़ गया हो, तो शनिवार की रात में पलंग के नीचे एक लोटा जल रख दें और रविवार की सुबह वह जल वृक्षों को अर्पित कर दें। लाभ होगा, ऐसा प्राचीन अवधारणाएं कहती हैं।

बात पते की

कुंडली के अष्टम भाव में यदि केतु आसीन हों, तो व्यक्ति साहसी होता है। एक पूर्ण गुरु इनके जीवन को सकारात्मक बना सकता है, नकारात्मक संगति इनको गर्त में धकेल सकती है। ये साधु की तरह जीवन व्यतीत करते हैं, सदा दूसरे का भला सोचने वाले होते हैं। खेल से इन्हें बहुत फ़ायदा होता है। कठिन परिश्रम करने में सक्षम होते हैं, पर काम के बोझ से घबरा जाते हैं।

अतिविचारक होने के कारण छद्म भय से परेशान रहते हैं। 34 वर्ष की आयु के बाद बड़ी कामयाबी हासिल करते हैं, पर यह केतु स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालता है। मानसिक समस्या सहित इन्हें गुदा रोग कष्ट देते हैं। यह योग अप्राकृतिक संबंधों का भी कारक बन सकता है। उधार दिया धन इन्हें वापस नहीं मिलता। यदि केतु शुभ हो या शुभ ग्रह से दृष्ट हो, तो दीर्घ आयु हो सकती है। 40 वर्ष के बाद दांतों और चेहरे से संबंधित समस्या सिर उठाती है। करियर में समस्या और दुर्घटनाओं का भी यह कारक बनता है। इनका बायां पैर चोटिल हो सकता है, गिरने का खतरा भी बना रहता है।

भद्रा क्या है? क्या यह अशुभ है?
    हिंदू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण को महत्वपूर्ण अंग माना गया है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में विभाजित किए गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7 वें करण नाम विष्टि भद्र है, जिसे सामान्य बोलचाल में भद्रा कहते हैं।

अक्सर भद्रा को अशुभ समझने की भूल की जाती है, पर भद्रा सदैव अशुभ नहीं होती। यूं तो भद्रा में उत्सव, गृह प्रवेश, यात्रा, विवाह सहित कई प्रकार के शुभ कर्म निषिद्ध हैं, परंतु यज्ञ, विभाजन, वाद-विवाद, प्रतियोगिता, वैज्ञानिक, तकनीकी या तंत्र कार्य, मुकदमें व राजनैतिक प्रायोजनों में भद्रा को सफलता प्रदायक माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में भद्रा को सूर्य की कन्या और शनि की बहन माना गया है। कहते हैं कि इनकी उग्र प्रकृति को शांत करने के लिए ब्रह्मा ने भद्रा को कालगणना यानि पंचाग के करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टि भद्र या विष्टी करण रखा गया।

बाल के झड़ने और गिरने का भी ज्योतिष में कोई कारण है क्या?
        केश की लंबाई और घनेपन का सीधा संबंध मंगल, बृहस्पति और राहु से है। मंगल ख़राब होने से बालों की लंबाई के साथ ही घनापन कम होने लगता है। राहु और बृहस्पति के प्रतिकूल होने से केश झड़ने लगते हैं। असंतुलित राहु निजी जीवन में भी उथल-पुथल का कारक होता है। बालों की स्थिति व्यक्ति की मानसिक स्थिति के साथ वैवाहिक जीवन का भी दर्पण होती है। इससे व्यक्ति के मूड, मिजाज और कैफ़ियत की भी खबर मिलती है। सिर के ऊपरी बालों का झड़ना मंगल और गुरु की कमज़ोर स्थिति को परिलक्षित करता है। गिरता बाल कुंडली में मंगल दोष का भी कारक है। गिरते बाल गृह क्लेश और मानसिक अशांति का भी संकेत देते हैं।

 यदि सप्तम यानी पति/ पत्नी भाव में शनि और मंगल की युति हो, तो यह कैसा योग है?
       शनि व मंगल परस्पर शत्रु हैं। कुंडली में इनकी युति जीवन में कष्ट प्रदान करती है। ये युति जिस भी भाव में हो, भावजन्य फलों की क्षति करती है, स्थायित्व, उन्नति से भी वंचित रखती है। अन्य ग्रहों की स्थिति उत्तम होने पर कम से कम 36वें वर्ष तक तनाव का सृजन तो करती ही है। इससे प्रभावित लोगों को सरकारी नौकरी बमुश्किल मिलती हैं, उच्चपद प्राप्ति में भी विघ्न आता है। भविष्य में पैरालिसिस जैसे विकार भी परेशान करते हैं। सप्तम भाव में यह युति शुभ होने पर समस्त सुख एवं अशुभ होने पर अप्रिय परिणाम देती है। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में कष्ट व उससे विवाद बना रहता है, पर शनि तुरंत संबंध-विच्छेद नहीं होने देता।

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